मीरा भटक रही- डॉ इंदु कुमारी
December 17, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
मीरा भटक रही
हे नाथ परवर दिगार
करवाओ अपनी दीदारभक्तों की सुनो पुकार
मीरा भटक रही संसार ।
मायाजाल क्यों बिछाया
सब जीवों को भरमाया
तीन वृतियों में उलझाया
अजब रास तूने रचाया
ठोकर दर -दर खा रही
ठौह तेरी न पा रही हैँ
गीत विरहनी गा रही
इक दीवानी बुला रही ।
अंधकार में पड़े हैं जीव
कहाँ छुपे हो मेरे पीव
कहलाते हो दरिया दिल
क्यों सोये हो गाफिल।
सुनो भक्तों की पुकार
सुनें ये ह्रदय की गुहार
स्नेह की है वो हकदार
मीरा भटक रही संसार ।
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