बताओ न कैसे रहते हो ?--सिद्धार्थ गोरखपुरी

सड़क किनारे रहने वाले ग़रीब बेघरों को समर्पित रचना-
बताओ न कैसे रहते हो

बताओ न कैसे  रहते हो ?--सिद्धार्थ गोरखपुरी
मौसम ठंडा सूरज मद्धम
ऊपर से बदन पर कपड़े कम
सड़क किनारे तम्बू ताने
बताओ ना कैसे रहते हो?

सर्द हवा का तेज सा झोका
फ़टे तम्बू में अनेक झरोखा
कंपकपाते चुपके से बैठे
इतनी सर्दी कैसे सहते हो
बताओ ना कैसे रहते हो?

नहीं कोई घरबार तुम्हारा
साथ में है परिवार तुम्हारा
ठण्ड से मर जाएंगे पापा
ये बच्चों की बातें कैसे सुनते हो
बताओ ना कैसे रहते हो?

न रोजी है न रोटी का साधन
न कोई सुविधा न कोई प्रसाधन
दिल पे हाथ रखकर बताओ
कैसे करते हो जीवन यापन
अपनी व्यथा और दुर्दशा को
बताओ न किससे कहते हो?
बताओ ना कैसे रहते हो?

परिवार के हो एकमात्र सहारे
भटकते हो बस मारे - मारे
सरकार हक देने से रही
हक जानो अपना और लेलो प्यारे
बच्चों की इच्छाएं अधूरी रख
अपने वादे से रोज मुकरते हो
बताओ ना कैसे रहते हो?

-सिद्धार्थ गोरखपुरी

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