तुम देना साथ सदा-नंदिनी लहेजा

तुम देना साथ सदा।

तुम देना साथ सदा-नंदिनी लहेजा
नन्हा सा अंकुर बन जब, मैं मातृगर्भ में आया।
मेरे अस्तित्व को सींचा माँ ने, था तेरी आशीष का साया।

नव महीने गर्भ की तपन में, मैं व्याकुल रहता था।
बस तेरा ही नाम सहारा,मुझे हर क्षण रहता था।

तुम देते थे साथ मेरा,बन रहमत मेरे दाता।
कहता था ना भूलूंगा तुम्हे,दो बाहर आना हूँ चाहता।

फिर जन्म ले आता इस जग में,मिलते अनेकों रिश्ते।
प्रेम स्नेह की छाया में,बीता बचपन मेरा हँसते।

तुम देते थे साथ मेरा,मात-पिता, शिक्षक के रूप में।
और कभी जो थक जाता ,बनते थे छाया, इस जगरूपी धूप में।

मिले मित्र अनेकों,फिर हमसफ़र,सोचा सब पा लिया।
मोह माया में फंस कर,मैं मूरख तुमको भूल गया।

भूल गया वो तेरा साथ ही था,जो सब कुछ जीवन में पाया।
लोभ,अभिमान,अहंकार के मद में,जीवन अपना गवाया।

आज बुढ़ापे की दहलीज़ पर, खड़ा तुमको मैं याद कर रहा।
तुम देना साथ सदा ,जैसे देते आये हो,यह प्रार्थना कर रहा।

नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url