मर्जी उसकी-डॉ हरे कृष्ण मिश्र

मर्जी उसकी

मर्जी उसकी-डॉ हरे कृष्ण मिश्र
पंख लगा उड़ने की इच्छा ,
मानव मन भी कर लेता है ,
आशा और जिज्ञासा लेकर ,
दूर गगन में उड़ लेता है। ।।

इच्छा मेरी नए मंच पर,
अभिनंदन उसका करलूं ,
सोच रहा हूं मैं भी लिखूं ,
अपने मन से कुछ पूछूं।

विषय वस्तु से बहुत दूर हूं ,
जिंदगी मेरी करवट लेकर,
दूर कहीं जा कर बैठी है ,
उसका भी अनुमोदन ले लूं। ।।

लिखना लगता बहुत सरल है ,
लिखने का अभ्यास कहां है ,
बैठा बैठा खुद ही अपनी ,
जिम्मेदारी से भाग रहा हूं ।।

उद्देश्य नहीं है लक्ष्य नहीं है ,
मैं जीवन को घेर रहा हूं ,
बड़े-बड़े नेताओं के बीच ,
सुंदर संभाषण कर लेता हूं ।।

चल गुजारे जिंदगी के छन ,
एक पवन का झोंका आया ,
शीतलता कुछ देने को ,
प्रकृति हमारी बहुत उदार ।।

कब तक ढोएं जिंदगी। ,
थाह पता मिलता नहीं ,
पीड़ा बढ़ गई इस तरह ,
कट नहीं पाती जिंदगी। ।।

लौकिकता की प्रेम कहानी ,
बहुत बड़ी है जीवन में ,
ईश्वर की तो बहुत कृपा है,
हम तो उसकी रचना हैं ।।

निर्णय तो उसका ही होगा ,
हम तो केवल मात्र उसी के ,
टूट गए गर हम जीवन में ,
यह निर्णय भी उसका है। ।।

समय कठिन तो आना था ,
तो होगी उसकी ही मर्जी ,
चिंतन करना फर्ज हमारा ,
कोई स्वीकार नहीं अर्जी ।।

मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड।

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