प्रकृति की गोदी- डॉ हरे कृष्ण मिश्र

प्रकृति की गोदी

प्रकृति की गोदी- डॉ हरे कृष्ण मिश्र
ध्यान साधना वरदान प्रकृति की,
हम शोध खोज न कर पाते हैं ,
पूर्ण प्रकृति हमारी ध्यान मग्न है ,
सुंदर चिंतन का विषय वस्तु है। ।।

हमें जल प्रपात सुंदर से झरने,
शब्द ध्वनि कर कुछ कहते हैं ,
हम मानव का ध्यान कहां है ,
संरक्षक उसे ना दे पाते हैं ।।

सदियों से है साथ उसी का ,
नवजीवन बसाया  है उसने मेरा ,
जीवन निर्वाह के सब साधन हैं,
फिर भी दूर उसी से हम हैं ।।

कहते हैं इस धरा धाम पर ,
प्रणय गीत मानव बन आया,
आए उत्सुक प्रकृति गोद में ,
आनंद लिए हम अपना सारा ।।

धरा धाम की कथा मनोहर ,
श्रद्धा मनु का आविर्भाव है ,
हिम गोदी में चल कर आए ,
अपना तो इतिहास यही है ।।

कितना सुंदर कितना पावन ,
हम प्रकृति के सुंदर उपहार ,
क्रीड़ा कर पावस प्रदेश में ,
चल आए इस धरा धाम पर।।

अभिनंदन करते मातृभूमि का,
जीवन पाया जिसमें मधुमास,
ध्यान मग्न इस धरा धाम पर,
मिला जीवन सुंदर आयाम ।।

ऊर्जा स्रोत प्रकृति की गोदी ,
लेकर आता सुंदर प्रभात ,
बिंब प्रकृति के मनमोहक,
मन मंदिर में बन जाते हैं ।।

कल-कल करती धारा में ,
नदियां गाती इसी प्रदेश में ,
प्रकृति का कितना विस्तार,
सौंदर्य समेटता काव्यशास्त्र ।।

मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड।

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