आगे बढ़ते हैं!-डॉ. माध्वी बोरसे!

आगे बढ़ते हैं!

आगे बढ़ते हैं!-डॉ. माध्वी बोरसे!
वक्त बीत गया, समा बदल गया,
चलो सब भूल कर आगे बढ़ते हैं,
दिल में लाए दया,
अब और नहीं लड़ते,
चलो सब भूल कर आगे बढ़ते हैं!

जब जीना हर हाल में है चाहे गर्मी हो या सर्द,
खुशी से जीने की कोशिश करें भुला के सारे दर्द,
क्यों ना अतीत को भूल कर वर्तमान को पढ़ते हैं,
वक्त बीत गया, समा बदल गया,
चलो सब भूल कर आगे बढ़ते हैं!

हममें ताकत है आगे बढ़ने की,
स्वयं को ही नहीं दूसरों को भी बढ़ाने की,
स्वयं की काबिलियत को याद करते हैं,
वक्त बीत गया, समा बदल गया,
चलो सब भूल कर आगे बढ़ते हैं!

यदि अतीत के दर्द में आंसू बहाएंगे,
उज्जवल वर्तमान कैसे बनाएंगे,
भविष्य को कैसे सवार पाएंगे,
अब नहीं किसी से डरते हैं,
वक्त बीत गया, समा बदल गया,
चलो सब भूल कर आगे बढ़ते हैं!

कामयाबी हमारे कदमों को चूम रही है,
खुशियां जिंदगी में भर गई है,
ना मूडे पीछे, आगे की ओर देखते हैं,
वक्त बीत गया, समा बदल गया,
चलो सब भूल कर आगे बढ़ते हैं!!

डॉ. माध्वी बोरसे!
( स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)

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