एक अभिशाप- जितेन्द्र 'कबीर'

January 15, 2022 ・0 comments

एक अभिशाप

एक अभिशाप-  जितेन्द्र 'कबीर'
एक तरफ हैं...
घर में बेटी के जन्म लेने पर
मायूस होने वाले लोग,
लेकिन बेटे के जन्म पर
पूरे गांव, रिश्तेदारी में मिठाइयां बांटकर
खुशियां मनाने वाले लोग

बेटियों के अन्नप्राशन, जन्मदिन और
मुण्डन संस्कार महत्व न देकर
बेटों के समय पूरे समाज को
धूमधाम से भोज खिलाने वाले लोग,

बेटियों को कम खर्च पर
सरकारी विद्यालयों में थोड़ा बहुत पढ़ाकर
उच्च शिक्षा के लिए पैसों की तंगी का
हवाला देकर
बेटों की शिक्षा महंगे निजी स्कूल-कॉलेजों से
करवाने वाले लोग,

बेटों की ज्यादातर गलतियों को
नजर अंदाज करके
बेटियों को खाने, पहनने के मामले में भी
जमकर नसीहतों की घुट्टी पिलाने वाले लोग,

बेटों की शादियों में दूसरे लोगों के देखा-देखी
वधु पक्ष को अपनी मांगों की
लम्बी चौड़ी लिस्ट थमाते लोग,
और अगर उनमें रह जाए कोई कमी पेशी
तो शारीरिक-मानसिक यातनाएं दे देकर
वधू का जीना दूभर बनाने वाले लोग,

यहां तक कि किसी औरत का पति
मर जाने पर भी उसे ही इस बात के लिए
जिम्मेदार ठहराने वाले लोग,

मौत के बाद की रस्मों में तरह तरह के
रीति-रिवाजों का हवाला देकर
औरत के मायके वालों का
अधिकतम खर्चा करवाने वाले लोग,

और दूसरी तरफ...
यौन दुर्व्यवहार के मामलों में
लगभग अप्रासंगिक हो चुके हमारे कानून
और हमारी न्यायिक व्यवस्था,
खुद ऐसे मामलों में फंसे हमारे
असंवेदनशील जनप्रतिनिधि हैं
इस देश में बेटी के जन्म को
एक अभिशाप बनाने वाले लोग।

जितेन्द्र 'कबीर'

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