संक्रांति -डॉ. माध्वी बोरसे

संक्रांति !

संक्रांति -डॉ. माध्वी बोरसे
चलो हम सब मिलकर बनाते हैं मकर संक्रांति,
सर्दियों में आलस्य में जकड़ा, शरीर पकड़े थोड़ी सी गति,
भागदौड़, हल्ला गुल्ला और बहुत सारी मौज मस्ती,
इस त्यौहार की महत्वता संपूर्ण भारत में मानी जाती!

खुले आसमान में, सभी पतंग उड़ाते,
मूंगफली और गुड से बनी चिक्की,और तिलगुड़ से बने व्यंजन खाते,
बड़े हर्षोल्लास से यह त्यौहार को मनाते ,
आसमान में विहंगम दृश्य, भरपूर आनंद ह्रदय में जगाते!

चलो पतंग की तरह, हम अपने सपनों को भी उड़ान दे,
नई-नई ऊंचाइयों को छू के, अपनी काबिलियत का प्रमाण दें,
चलो ढील देकर मंजिल तक पहुंचे, यही तो असली शान है,
स्वतंत्रता से पूरे करें, जो भी मन में अरमान है!!

डॉ. माध्वी बोरसे!
(स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)


Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url