सीमांकन-जयश्री बिरमी

सीमांकन

सीमांकन-जयश्री बिरमी
जैसे दो देश,दो प्रांत,दो शहर,दो मोहल्ले सभी की अपनी पहचान स्थापित हो इस हेतु से उन्हे चिन्हित कर हदों को तय किया जाता हैं।जिससे उनकी व्यवशता में आसानी रहे और जिम्मेवारी भी तय हो सके।जैसे शहर के व्यवशापन में कॉर्पोरेशन,गांव की ग्रामपंचायत आदि की जिम्मेवारी होती हैं। वैसे ही हर रिश्ते में एक सीमांकन होता हैं जिसे अगर लांघ के निकलों तो परिणाम विपरीत आएगा ये बात पक्की हैं। मां बेटी का रिश्ता या दो बहनों का रिश्ता तो बेनमुन हैं लेकिन वहां भी एक बारीक सी ही सही किंतु सीमा तो होती ही हैं ।
मां के साथ और बहन के साथ दिल की हर बात को तुम सांझा कर सकते हो लेकिन पति या प्रेमी का साथ बिताए अंतरंग पल आप कभी भी नहीं कह सकोगे।वैसे ही सास बहू के रिश्ते में होता हैं, सास कितनी भी अच्छी हो लेकिन मां नहीं बन सकती ,चाहे वह कहें भी कि वह तो बहु की मां ही हैं।वैसे ही बहु के मामले में होता हैं,वह कितना भी कहें कि वह सास को मां ही समझती हैं लेकिन यह कुछ हद तक ही हो सकता हैं।
वैसे ही ये संबंध देवरानी– जेठानी और ननंद–भौजाई के लिए भी वही अनुरूप हैं।
वैसा ही दोस्तों में भी हैं,सोशल मीडिया पर दोस्तों के बारे में बहुत पोस्ट आते हैं और कुछ हद तक ये सही भी हैं लेकिन वहां भी कुछ सीमाएं आ ही जाती हैं। सब का अपना अपना स्वभाव और और अलायदा विचार भी होतें हैं।लेकिन दिल की बातें खुल्ले दिल से कह पाते भी हैं और बिना जिजक दिल का हाल बयान कर सकते हैं अपने बचपनें को वापस बुला के आनंद ले साथ कुछ अच्छे पल गुजार सकते हैं।दोस्तों से मिलकर अपनी सारी समस्याओं को थोड़ी देर के लिए भूल जा सकते हैं।उनके साथ प्राप्त होता निर्दोष आनंद प्राप्त होता हैं वह जीवनके अविस्मणीय पलों में बदल जाता हैं।जो कुछ हम दिमाग में लिए हर वक्त परेशान रहते हैं उसे भूलने का आसान तरीका ही दोस्त की हाजरी हैं।चाहे कितने भी कमीनें हो दोस्त तो दोस्त ही हैं।लेकिन कई बार कोई उच्च महत्ता रखने वाला थोड़ा प्रभावी होने से अपने प्रभाव के तहत सब के उपर अपनी इच्छाएं लाद देने की आदत वाला होने से जो आपस के सामनज्यस में कमी आती हैं या कोई न कोई नाराज हो जाता हैं।आत्मसम्मान को ठेस पहुंचने से मनदुःख होना शुरू हो जाता हैं और धीमे धीमे दोस्ती में दरारें आना शुरू हो जाता हैं।वैसे तो हरेक रिश्तें में कोई न कोई व्यवधान आता रहता हैं।तब सभी को ही उस वक्त को संभालना बहुत ही जरूरी हो जाता हैं।एक सयाना फैसला या विचार कोई भी रिश्तें को बचाने में सक्षम होता हैं।पहले ऐसी दोस्ती कम ही हुआ करती थी लेकिन अब ये कुछ ज्यादा ही प्रचलित हो गई है और वह हैं विजातीय दोस्त से दोस्ती।जब सजातीय दोस्ती होती थी तब एक प्रश्न कम था जो विजातीय दोस्ती में प्रखर हो उठता हैं। दोस्ती विजातीय हो तो आदमी और औरत के अभिमान के टकराव का प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं।पुरुष का ईगो जरा ज्यादा ही होता हैं जो स्त्री या नारी को अपने से कमतर ही समझ कर कईं मौकों पर अपमान करने से नहीं चूकते।कईं बातों में उसे कमतर समझ अपमानित करना आम बात हैं।इन परिस्थितियों में स्त्री को अपने स्वाभिमान की रक्षा करना आना चाहिए।सबसे बड़ी विडंबना जातीय आकर्षण का रहता हैं। उस उम्र का तकाजा भी यहीं होता हैं लेकिन थोड़ी सूझ बूझ से काम लिया जाएं तो रिश्ते को निभाने में आसानी रहती हैं।विजातीय दोस्ती में दोस्ती और विजातीय आकर्षण में एक पतली सी रेखा होती हैं जिसे अगर गलती से भी पार कर देने से सामाजिक और मानसिक प्रश्नों का उद्भव होता हैं।लड़का अगर शादी के लिए तैयार हो तभी भी विश्वास नहीं कर शादी तक दूरी बनाए रखने में ही समझदारी हैं।कईं बार शरीर सुख के लालच में किए गया वादों को तोड़ देना उनके लिए नैतिकता का हनन नहीं किंतु एक खेल होता हैं।आजकल शील नमक शब्द जो शब्दकोश से निकल चुका हैं उसकी वापसी बहुत ही जरूरी हैं।विदेशों की तरह सिर्फ शारीरिक सुख के लिए बंधे रिश्तों की उम्र भी बहुत कम होती हैं।
अगर ये सब सोच समझ कर जीवन यापन करेंगे तो जिंदगी सरल हो जायेगी।मानसिक तनाव और अवसाद से बचे रहेंगे,मनोबल भी मजबूत होगा।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद

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