बसंत की बहार- डॉ इंदु कुमारी
February 14, 2022 ・0 comments ・Topic: Dr-indu-kumari poem
बसंत की बहार
बसंत तेरे आगमन सेप्रकृति सजी दुल्हन सी
नीलगगन नीलांबर
जैसे श्याम वर्ण कान्हा
वस्त्र पहने हो पितांबर
पीले रंगों में सरसों फूला
मस्त पवन मस्तानी वेग
जैसे सावन के झूला
मदमस्त हवाएं वह चली
जैसे मटकी ले चली राधा
झूमती पौधों की पत्तियां
इतराती बसंत की डालियां
बसंत की बसंती तेरी
चुलबुली बल खाती है
परम यौवन को पाकर
बावली यह इतराती है
ज्यादा जल पाकर नदियां
किनारे तोड़ जाती हैं
कोयल की सुरीली तान से
दग्ध ह्रदय शीतल कर जाती है।
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.