वो तैयार बैठी हैं अब- जितेन्द्र 'कबीर

वो तैयार बैठी हैं अब

वो तैयार बैठी हैं अब- जितेन्द्र 'कबीर
लोकतंत्र में...
चुनी गईं सरकारें
जनता की आवाज उठाने के लिए,
निरंकुश हो,
तैयार बैठी हैं अब
जनता की ही आवाज दबाने के लिए
चुनी गईं सरकारें
जनता की निजता बचाने के लिए,
सशंकित हो,
तैयार बैठी हैं अब
जनता की ही जासूसी करवाने के लिए।
चुनी गईं सरकारें
जनता की गर्दन
साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए,
मिलीभगत कर,
तैयार बैठी हैं अब
जनता का ही खून पी जाने के लिए
चुनी गईं सरकारें
धर्म-जाति का भेदभाव खत्म कर
सामाजिक समानता लाने के लिए,
सत्ता मोह में अंधी होकर,
तैयार बैठी हैं अब
जनता में साम-दाम-दंड-भेद से
फूट डलवाने के लिए।
यूं समझें इस बात को
कि हमनें जो बाड़ लगाई थी
अपनी फसलें बचाने के लिए,
नरभक्षी होकर,
तैयार बैठी है अब
वो हमारी ही नस्लें मिटाने के लिए।

जितेन्द्र 'कबीर
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति-अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314

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