यादें-जयश्री बिरमी

यादें

यादें-जयश्री बिरमी
जब आई न नींद खूब उधेड़े ताने बाने
कुछ दिन ही नहीं कुछ महिनें ही नहीं
सालो तक पहुंचाई
बचपन से हुई कुमारी और फिर हुई नारी
नारी से हुई मां जिस से पूर्णता पाई
जिया बचपन अपना उनमें इस उम्र में
और बहुत हर्षाई
पीछे दौड़ी मैं जब थी परीक्षा उनकी
रात जगी मैं तब भी थी परीक्षा उनकी
आगे बढ़ी थी जवानी पिछड़ रहा था बुढ़ापा
हुए काबिल उड़ गए छोड़ घोंसला
कर गए खाली दे गए खालीपन
अब तो हैं बस उधेड़ बुन का समां
ताने बाने के बिखराव का समां
खालीपन,बिखराव और जगराते रह गएं हैं
चिड़ा चिड़िया ही अब घोंसले में रह गएं हैं
देख आसमां की और किसान की तरह
बारिश की राह देख रहे हैं
कब आएं और भरे घोंसला
हो हरी भरी फुलवारी

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद



Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url