क्या गवायां हैं आज

क्या गवायां हैं आज

क्या गवायां हैं आज
हर करम अपना करेंगे ए वतन तेरे लिए
कहने वाली वह आवाज जो शांत हो गई हैं
भर गई हैं हर हिंदुस्तानी की आंख में पानी
ये वही हैं जो शहीदों के लिए अपनी आंख में
भरती थी पानी
अपनी आवाज से दर्द भी उभारा और भक्ति भी
प्यार के अविरत पलों को भी गया
कोकिल कंठी देश की कोकिला
चली गईं हैं आज
कैसे भरेगी वो जगह पता नहीं
लेकिन भूलेंगे लता जी को कोई नहीं
दासियों सालों तक हर शे में गूंजी आवाज उसकी
आज जो हुई हैं खामोश
रुलाया था नेहरू जी को गा कर शान–ए–वतन के गीत
गाती रही गाती जा रही थी अविरत
थम गई वोही आवाज आज
कौन गायेगा अब ’मेरे वतन के लोगों’
याद करवाती थी उनको जिन्होंने ने सरहद पर जान गवाई
वही छोड़ गईं गानों और यादों के गुलदस्तों को
एक स्वर से भरपूर युग की समाप्ति
को कोटि कोटि प्रणाम

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद

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