मेरे यार फेसबुकिए-सिद्धार्थ गोरखपुरी
February 03, 2022 ・0 comments ・Topic: poem Siddharth_Gorakhpuri
मेरे यार फेसबुकिए
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँमैंने तुम्हें ढूंढ रहा हूँ
यहाँ -वहाँ न जाने कहाँ
तुम्हारा अप्रतिम सा फोटो
जब भी फेसबुक पर आता था
तुम्हें हँसता , घूमता देखकर
मेरा रोम -रोम खिल जाता था
तुम लाइन ऐसी लिखते थे
कि जीत लोगे सारा जहाँ
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँ
इस समय एक बार भी तुम
ऑनलाइन नहीं आते हो कभी
कुछ अता -पता नहीं है तुम्हारा
मुझे हाल बता दो सही - सही
तुम आनंद ले रहे होगे कहीं
मैं परेशान हूँ बस खामखा
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँ
तुम हुनरबाजी के ज्ञाता
और सुविख्यात टैगिए थे
पचासों को तुम टैग करोगे
ये काम तुमने तय किए थे
तुम्हरे सिवा भला कौन जलाए
बुझता हुआ फेसबुकिया समां
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँ
फोटो एडिट करते थे ऐसे
जैसे एडिटिंग में पीएचडी
फोटो पर तुम पका देते थे
शब्दों की बेजोड़ खिचड़ी
कई दिनों से ना दिखा है
फोटो का तुम्हारे नामों -निशां
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँ
हर दोस्त के जन्मदिन पे
वीडियो बना के भेजते थे
और लोग भी विश करें उसे
सबको तुम सहेजते थे
तुम जब गायब हो तो
अब कौन सहेजेगा यहाँ
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँ
यार फेसबुकिए! अब ऐसे
काम ना चल पाएगा
अगर ऐसे गायब रहे तो
तुम्हारा नाम न चल पाएगा
अब तो तुम लाइव आ जाओ
और सुना दो अपनी दास्तां
मेरे यार फेसबुकिए बता दो
इस समय तुम हो कहाँ
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