व्यंंग्य- सुधीर श्रीवास्तव

व्यंंग्य

व्यंंग्य- सुधीर श्रीवास्तव
राजनीति करना चाहता हूँ
मैं भी सोचता हूँ
कि राजनीति में कूद पड़़ूं,
इस हमाम में सब नंगे
मैं ही तन ढाक कर क्या करूँ?
तंग आ गया हूँ वोट दे देकर
क्यों न इस बार पहले टिकट
और फिर वोट की मांग करूँ।
राज की बात आपको बताता हूँ
मैं भी खूब धन कमाना चाहता हूँ
अब ईमानदारी से भला
दाल रोटी तो चल ही नहीं सकती
बस एक बार बड़ा हाथ मारना चाहता हूँ।
आलीशान बंगला महंगी गाड़ियों के
आजकल सपने बहुत आते हैं,
बस कैसे भी ये सपने अपने
पूरे कराना चाहता हूँ,
अंदर की बात है किसी से मत कहना
हवाला से धन भी कमाना चाहता हूँ,
बस एक बार मौका भर देकर तो देखिए
स्विस बैंक में अपना भी खाता खुल जाये
रुपयों से बैंक खाता भरना चाहता हूँ।
आप सबने कितनों को मौका दिया
एक बार मुझे भी देंगें तो
पहाड़ नहीं टूट जायेगा,
मैंनें तो अपना राज आपको बता ही दिया
बस एक बार सिर्फ़ एक बार
मौका तो देकर कृतार्थ कीजिये
सच बताऊँ कि मैं भी देश छोड़कर
भाग जाना चाहता हूँ।
राजनीति तो सिर्फ़ बहाना है दोस्तों
नं. दो का पैसा कमाना चाहता हूँ,
कानून के लफड़े से बचने की खातिर
नेताओं के गुण सीखना चाहता हूँ,
तिहाड़ जाकर भी नेताओं के
जलवे बहुत देखे हैं हमनें
बस यही गुरुमंत्र मैं भी
नेताओं से सीखना चाहता हूँ,
ईमानदारी से कहता हूँ
दो चार के जीवन का टिकट भी
काटना पड़े तो भी चलेगा
भाई को भाई से लड़ाना पड़े
जातिधर्म का जहर भी बोना पड़े
वो सब करने में पारंगत होना चाहता हूँ।
क्योंकि मैं पक्का नेता ही नहीं
बेशर्म, बेहया नेता भी बनना चाहता हूँ,
इसीलिए राजनीति के संगम में उतर तीर्थाटन करना चाहता हूँ
बस! थोड़ी सी राजनीति
मैं भी करना चाहता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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