आशा- अनिता शर्मा
आशा
उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा,कौन हो तुम?हौले से पूछा।
उसने आंखो में चमक भर कहा,
मैं तो हूँ,तुम्हारी ही आशा ।
एक विश्वास सहज ही आया,
आत्म सम्मान सहज ही छाया।
आशान्वित हो उठी तत्क्षण,
नव-जागृति मनोबल बढ़ाया।
मैने उस आशा को अपनाया,
जीवन में अवसर को पाया।
समय का सदुपयोग किया तब,
सकारात्मक ऊर्जा से भरा मन।
आशान्वित क्षण नव उत्साहित,
आभासित दीपक की ज्योति।
सहचर आशा की किरण भर,
अग्रसर हो जीवन की ओर ।