अजय प्रसाद की रचनाएं
March 26, 2022 ・0 comments ・Topic: Ajay_prasad poem
अजय प्रसाद की रचनाएं
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हमसे हमारे ख्वाब न छीन
काँटों भरी गुलाब न छीन ।
जिंदा तो हूँ गफलत में सही
यादों की ये सैलाब न छीन ।
बेहद सुकून से रहते हैं यहाँ
सुखे फूलों से किताब न छीन ।
कुछ तो रहम कर ए मेरे खुदा
मेरे हिस्से की अज़ाब न छीन ।
कहने दे मुझे नाकाम आशिक़
रकीबों से मेरा खिताब न छीन ।
हक़ है उन्हें भी बात रखने का
मजलूमों से इंकलाब न छीन ।
नये दौर मे तरक्की है जाएज़
मगर बच्चों से आदाब न छीन ।
जिंदा रख अजय अपने को
खुद से दिले बेताब न छीन
- अजय प्रसाद
उसे अपनी गल्तियों का एहसास तो है
उसकी रहनुमाई में कुछ खास तो है ।
उठाता है कदम तो बेशक़ एहतियात से
मगर खमियाजा भुगतना भी रास तो है।
लाखों लोगों के दुआओं का असर हुआ
आजकल वो अपनो के आस-पास तो है।
डूबते सूरज से लेके सबक है रोज़ सोता
उसे वक्त के कायदे से होशोहवास तो है।
लाख इलज़ाम लगाते रहें आप उस पर
उसकी ईमानदारी पे सबको विश्वास तो है
मिल रहा है मुस्कुराकर ये अलग बात है
मगर अंदर अंदर वो बेहद उदास तो है।
-अजय प्रसाद
मेढकी को भी अब जुकाम हो रहा है
सब कुछ सलीके से निलाम हो रहा है ।
देखिए किस कदर खुश है खलनायक
मशहूर होने के लिए बदनाम हो रहा है।
आप सोंचतें रहें लोग क्या कहेंगे,मगर
हौंसलाअफजाई का इंतजाम हो रहा है।
जो जिस ओहदे पे है सियासत में यारों
हैसीयत मुताबिक दुआ-सलाम हो रहा है।
आप अजय की फ़िकर न करें जनाब
रोज़ उसका भी काम तमाम हो रहा है ।
-अजय प्रसाद
फूल और खार के बीच
जीत और हार के बीच ।
रिश्ता होता गहरा यारों
घृणा और प्यार के बीच ।
आजकल है मेल कहाँ
घर औ परिवार के बीच।
कौन महफ़ूज़ रहता है
गर्दनो-तलवार के बीच ।
अच्छा है खुद छोड़ गए
नाव मझधार के बीच ।
-अजय प्रसाद
अरे!ये मुहँ और मसूर की दाल
गरीब है,महंगे शौक,मत पाल ।
मत पका यहाँ खयाली पुलाओ
जो है मिला उस को तो संभाल।
ख्वाब देख मगर,औकात में रह
खाली पीली खुद को न खंगाल ।
है खाली जेब खुद्दारि ! जैसे कि
गीदड़ ने पहना हो शेर की खाल।
मुसीबत मौके का फायदा उठाती है
अजय कुछ तो रख वक्त का ख्याल।
-अजय प्रसाद
जिंदा तो हूँ गफलत में सही
यादों की ये सैलाब न छीन ।
बेहद सुकून से रहते हैं यहाँ
सुखे फूलों से किताब न छीन ।
कुछ तो रहम कर ए मेरे खुदा
मेरे हिस्से की अज़ाब न छीन ।
कहने दे मुझे नाकाम आशिक़
रकीबों से मेरा खिताब न छीन ।
हक़ है उन्हें भी बात रखने का
मजलूमों से इंकलाब न छीन ।
नये दौर मे तरक्की है जाएज़
मगर बच्चों से आदाब न छीन ।
जिंदा रख अजय अपने को
खुद से दिले बेताब न छीन
- अजय प्रसाद
उसे अपनी गल्तियों का एहसास तो है
उसकी रहनुमाई में कुछ खास तो है ।
उठाता है कदम तो बेशक़ एहतियात से
मगर खमियाजा भुगतना भी रास तो है।
लाखों लोगों के दुआओं का असर हुआ
आजकल वो अपनो के आस-पास तो है।
डूबते सूरज से लेके सबक है रोज़ सोता
उसे वक्त के कायदे से होशोहवास तो है।
लाख इलज़ाम लगाते रहें आप उस पर
उसकी ईमानदारी पे सबको विश्वास तो है
मिल रहा है मुस्कुराकर ये अलग बात है
मगर अंदर अंदर वो बेहद उदास तो है।
-अजय प्रसाद
मेढकी को भी अब जुकाम हो रहा है
सब कुछ सलीके से निलाम हो रहा है ।
देखिए किस कदर खुश है खलनायक
मशहूर होने के लिए बदनाम हो रहा है।
आप सोंचतें रहें लोग क्या कहेंगे,मगर
हौंसलाअफजाई का इंतजाम हो रहा है।
जो जिस ओहदे पे है सियासत में यारों
हैसीयत मुताबिक दुआ-सलाम हो रहा है।
आप अजय की फ़िकर न करें जनाब
रोज़ उसका भी काम तमाम हो रहा है ।
-अजय प्रसाद
फूल और खार के बीच
जीत और हार के बीच ।
रिश्ता होता गहरा यारों
घृणा और प्यार के बीच ।
आजकल है मेल कहाँ
घर औ परिवार के बीच।
कौन महफ़ूज़ रहता है
गर्दनो-तलवार के बीच ।
अच्छा है खुद छोड़ गए
नाव मझधार के बीच ।
-अजय प्रसाद
अरे!ये मुहँ और मसूर की दाल
गरीब है,महंगे शौक,मत पाल ।
मत पका यहाँ खयाली पुलाओ
जो है मिला उस को तो संभाल।
ख्वाब देख मगर,औकात में रह
खाली पीली खुद को न खंगाल ।
है खाली जेब खुद्दारि ! जैसे कि
गीदड़ ने पहना हो शेर की खाल।
मुसीबत मौके का फायदा उठाती है
अजय कुछ तो रख वक्त का ख्याल।
-अजय प्रसाद
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