लघु कथा-अंधेरी गुफा का बूढा शेर

लघु कथा: अंधेरी गुफा का बूढा शेर

लघु कथा-अंधेरी गुफा का बूढा शेर
जंगल का राजा बूढा शेर अंधेरी गुफा मे बैठा रहता था।उसके साथ एक परम भक्त खरहा भी रहता था जो शेर का जंगल मे दबदबा बनाये रखने के लिए जानवरों मे भय का वातावरण बनाए हुये था ।शेर के भोजन की व्यवस्था वही किया करता था ।
एक दिन बूढे शेर ने गुफा द्वार पर एक खरगोश को मुलायम घास चरते देखा ।चतुर खरगोश से उसकी खानदानी दुश्मनी थी । उसके ही बातों मे आकर उसका एक पूर्वज कुंए मे गिर कर अपनी जान गँवा दिया था ।तब से वह जंगल मे चतुर खरगोश जाति को ही समाप्त करने का प्रण कर लिया था ।
लेकिन बूढा शेर जैसे ही पकड़ने की कोशिश करता ,चतुर खरगोश फूर्ती से उछल ता हुआ दूर निकल जाता।शेर. के.अंदर. जाते ही वह फिर आकार घास चरने लगता ।रोज रोज आकर वह.बूढे शेर कोअपनी. बुद्धि औऱ फूर्ती से छकाता था ।
एक दिन बूढा शेर अपने परम भक्त खरहे से कहा,"मेरे पदचिन्हो का अनुशरण करने वाले प्रिय भक्त ! क्या तुम मेरी एक इच्छा पूरी कर सकते हो ।"
बोलिये महाराज , " क्या आदेश है ? "
" तुम्हारे जाने के बाद एक बुद्धिमान खरगोश रोज गुफा द्वार पर आकर मुलायम घास चरता है । क्या तुम उसे मेरे भोजन हेतु मेरे हवाले कर सकते हो ।"
" महाराज, एक नहीं रोज आपके भोजन के लिए खरगोश का प्रबंध कर सकता हूँ ,बस थोड़ा सा मधु मिल जाय तो ।"
" भक्त, मधु का क्या करोगे ।"
" महाराज, आपके राज मे बुद्धिजीवी खरगोशो को घास ही चरने को मिलता है । अगर उसे घास के साथ मधु का स्वाद चखा दिया जाय तो वह अपनी बौद्धिक क्षमता पर खुद पानी फेर कर गुफा के भीतर खिंचता चला आयेगा ।
" बस भक्त, तुम्हारी इसी बुद्धि का मैं हमेशा कायल रहा हूँ ।"
शेर को याद आया, उसने गुफा के भीतर ही एक कोने मे मधु का छत्ता लगा देखा है।दूसरे ही दिन वह छत्ते को तोड़ लाया ।
खरहे ने छत्ते का एक टुकड़ा मुँह मे दबाकरौ गुफा द्वार के बाहर लाकर हरी घास पर मधु लगा दिया ।
रोज की तरह खरगोश आकर उस जगह के घास के तिनके को चखा तो उसे घास का स्वाद बड़ा अच्छा लगा । वह रसलिप्त होकर मजे से घास खाने लगा ।
फिर तो वह रोज रोज वहीं आकर मधु लगी घास चरने लगा । साथ मे रोज वह दो चार मित्र खरगोशो को भी ले आता । धीरे धीरे उसके मित्रों की संख्या बढ़ती गई औऱ झुंड के झुंड आकर घास का मीठा स्वाद चखने लगे ।
एक दिन खरहे ने उस जगह के घास पर मधु नहीं लगाया । खरगोश उस बे स्वादः घास खाकर खिन्न हो रहे थे ।इसी बीच वह खरहा मस्त मस्त चलता गुफा द्वार के भीतर जाने लगा तो उससे खरगोश ने पूछा, मित्र तुम इस अंधेरी गुफा मे कहाँ जा रहे हो ?
" मित्र इस गुफा के पार एक घास का मैदान है, जहाँ का घास एक बार चख लो तो दुनिया भर के सारे घास भूल जावोगे ।"
खरगोश बुद्धि लगाने लगे,शायद जैसा घास अभी तक इस गुफा द्वार पर खाते आये हैं, उससे भी अच्छा स्वाद वाला घास का पता उसे मालूम है।अतः शंका समाधान करने के लिए एक बुद्धिजीवी खरगोश बोला ," भाई रास्ते मे कहीं धोखा तो नहीं होगा ।"
" नहीं भाई ,मैं तो रोज वहीं घास चरने जाता हूँ ।"
खरहे की बात पर विश्वास करके सारे खरगोश उसके पीछे हो लिए ।थोड़ी दूर चलने पर एक छोटा सा छेद देखा तो सभी खरगोश रुक गये ।
" क्यों रुक गये मित्र ! इस छेद से गुजरने के बाद ही वह घास का मैदान दिखाई पड़ेगा ।" खरहे ने सबको विश्वास दिलाया ।
जब खरहे के विश्वास दिलाने पर सभी बुद्धि जीवी ख रगोश छेद कूद कर पार कर गए तो अचानक शेर के कारिंदो ने एक शिला खण्ड खिसकाकर उस छेद को बंद कर दिया जिससे भीतर अँधेरा हो गया।सारे खरगोश संभावित दुर्घटना की भय से थर थर काँपने लगे ।अचानक उन्हें अँधेरे मे दो चमकती आँखे दिखी ।फिर तो सारा माजरा उनके समझ में आ गया ।
चौड़े घने बालों वाला शेर अपने परम भक्त खरहे को जीभ से चाटने लगा ,जैसे वह भक्त की बुद्धिमत्ता पर उसे दुलार रहा हो ।
बुद्धिजीवी खरगोश सोचने लगा , जब बिना सोच विचार किये ,मन का मंथन न करने पर , दुतकारे जाने पर भी ,अपना इलाका छोड़ कर मधु के लालच मे पुनः वहीं घास चरने जाये तो वह बुद्धिजीवी चतुर सुजान खरगोशो की तरह एक दिन अँधेरी गुफा मे अपने को बंद ही पायेगा ।
इस प्रकार जंगल मे बुद्धिजीवियों का विभाजन हो गया ।
मधु लिप्त घास को चाटने वाले चाटुकार बुद्धिजीवी औऱ हरी घास पर निर्भर रहने वाले इसपार के बुद्धिजीवी घासलेट बुद्धिजीवी कहे जाने लगे ।
यह व्यंग्योक्ति तब से चली आ रही है।

# शैलेन्द्र श्रीवास्तव ,आपातकाल व्यंग्य
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