झाड़ू गुजरात में कितना कामयाब

झाड़ू गुजरात में कितना कामयाब

झाड़ू गुजरात में कितना कामयाब
दिल्ली में दो टर्म्स जितने वाले अरविंद केजरीवाल मुफ्त मुफ्त की राजनीति से प्रसिद्ध हो गए हैं।जहां उनकी सत्ता में पुलिस नहीं हैं तो अब पंजाब में पुलिस वाली सत्ता पा कर बहुत खुश हैं।वहीं पंजाब में भी बंदर बांट की राजनीति कामयाब रही और जीत का सेहरा पहन लिया हैं।पंजाब में अकालीदल बीजेपी के समर्थन के बगैर और नशाखोरी के इल्जामों के कारण असफल रहा तो कांग्रेस के अंदर फूट और विघटन के चलते कैप्टन अमरिंदरसिंघ की अनदेखी करने वाली कांग्रेस खुद ही धराशाई हो गई, उन्हे बाहर से किसी को विघटित करने की जरूरत ही नहीं पड़ी।कांग्रेस अब सभी जगह जर्जरित अवस्था की और प्रयाण कर रहीं हैं और उसी का फायदा आप पार्टी ले रही हैं।दिल्ली जैसे छोटे राज्य से पंजाब का तख्ता पाना आप के लिए एक नया कदम हैं जो दिल्ली के बाहर रखा उसने रखा हैं
पंजाब की जीत उनके लिए उत्साहवर्धक साबित हो सकती हैं।2023 में होने वाले 9 राज्यों के चुनावों के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति भी हो चुकी हैं और उस वक्त की नीतियों पर भी तानाबाना बुनना शुरू हो चुका हैं।दिल्ली के बुराड़ी से विधायक श्री संजीव झा को आम आदमी पार्टी ने जनजातीय बहुल राज्य में पार्टी के राजनैतिक मामलों के प्रभारी बनाया हैं।अब उन्हे गुजरात चुनाव में भी कमान सौंपी जा सकती हैं वे गुलबसिंह की जगह लेंगे।बीजेपी के चाणक्य अगर अमित शाह हैं तो आप में ये उपाधि संदीप पाठक को मिली हुई हैं।उन्हों ने अभी पंजाब से राज्यसभा परिसर में अपना नामांकन पत्र भी दखल किया हैं।वे पंजाब के पार्टी प्रभारी भी हैं।
अब गुजरात में सक्रिय होने के लिए अप्रैल में रैलियां निकालने के अलावा सोशल मीडिया में भी बहुत ही प्रचार और प्रसार हो रहा हैं।
कांग्रेस के राजकर्णियों को भी अपने पक्ष में शामिल करना भी शुरू कर दिया हैं जैसे कांग्रेस के पूर्व एमएलए इंद्रनील राज्यगुरु और वशराम सगथिया दोनों दिल्ली जाके आप पार्टी में शामिल हो गए हैं।वहीं कांग्रेस के प्रवीण मारू बीजेपी में शामिल हुए हैं।कांग्रेस के बारे में तो सब जानते हैं तो हम आप पार्टी के बारे में ही बात करतें हैं।जब से आप पार्टी पंजाब में जीती हैं उसकी एक और बढ़ती हुई हैं। पहलेँ बीजेपी उन्हे विरोध पक्ष में ज्यादा पावरफुल गिनते ही नहीं थे,ज्यादा तवज्जू नहीं देते थे।
अब बीजेपी की विपक्षों के प्रति जागरूक हो नीतियां तय हो चुकी हैं।पहले आप पार्टी को एक कॉर्पोरेशन में शासन करने वाली पार्टी समझ रहे थे लेकिन अब पंजाब में हुई जीत के बाद उनका विरोध पक्ष में सम्मिलित होना माना जाता हैं।अब आप पार्टी बीजेपी के रणनीति के लक्ष्य में आ गईं हैं। भगवनसिंघ मान का ओहदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंघ से ज्यादा बेहतर नहीं होगा,उनके प्रॉक्सी में राज तो केजरीवाल ही करेंगे। उस बात का प्रमाण पंजाब में आप पार्टी की जीत के बाद भगवत मन की गैरहाजरी में आईएएस अफसरों की पार्टी अध्यक्ष के नाते मीटिंग बुलाने वाली बात इस बात का प्रमाण देती हैं,जिसके बारे में काफी हागामें हो रहे हैं।जब पंजाब और हरियाणा अलग अलग राज्य हुए थे तब कुछ 5 या 10 सालों तक ही वहां राजधानी रखने का प्रावधान था लेकिन राजीव–लोंगोवाल की समजूती के बाद अभी तक चंडीगढ़ ही राजधानी रही हैं ,लेकिन अब चंडीगढ़ प्रशासन ने दोनों राज्यों को अपनी राजधानी अपने राज्य में बनाने की सूचना दे दी हैं। और अब चंडीगढ़ प्रशासन को पंजाब सरकार तहत ले के केंद्रीय कर्मचारियों के नियम लागू होंगे,पंजाब का कोई भी कानून लागू नहीं होंगे।अब भागवत मन का कहना हैं कि वे केंद्र से बात करके उसे फिर से हासिल कर लेंगे, ऐसा मान का मानना हैं जो होना मुश्किल हैं।दूसरी बात हैं दिल्ली के तीन नगर निगमों को एक कर के चुनाव टाल दिया जिसे केजरीवाल बीजेपी का डर जाहिर किया तो अमित शाह ने उन्हे संविधान पढ़ने की सलाह दी।केंद्र शासित प्रदेश में केंद्र के हक़ हिसाब से ही नगरनिगम में हस्तक्षेप किया गया हैं।अमित शाह की रणनीति के सामने केजरीवाल को अपनी रणनीति को खूब सावधानी से बनाना होगा।
एक नया मोर्चा केजरीवाल खोले उससे पहले ही बीजेपी ने उसे बंद कर दिया हैं वह हैं भाखरा व्यास मैंजमेंट बोर्ड हैं, जो दिल्ली पंजाब और हरियाणा ,राजस्थान को पानी सप्लाई करता हैं उसमे एक सदस्य पंजाब से होता हैं,दूसरा हरियाणा से उसको बदल के कोई भी स्टेट से सदस्य लिया जा सकता हैं ऐसा प्रावधान लागू होने से केजरीवाल को दूसरा जाता मिला हैं।जिससे दिल्ली और पंजाब को पानी ठीक ठाक मिलेगा किंतु हरियाणा को अन्याय हो सकता था।
तो अब ये शक्यता भी नहीं रही।
हिमाचल प्रदेश में होने वाले चुनाव में अपना कदम रखने की कोशिश भी प्रथम ग्रास में मक्षीका साबित होने जा रहा हैं,उनके हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष को रातों रात बीजेपी में शामिल कर लिया गया हैं और कई और भी आप पार्टी के लोग बीजेपी में शामिल होने की तैयारी में हैं
एक और मौका केजरीवाल ने दिया हैं दूसरे पक्षों –बीजेपी,कांग्रेस और अकालीदल को बहुत बड़ा हैं जैसे आगे बात हुई, आईएएस अफसरों की मीटिंग मुख्य मंत्री की गैरहाजरी में बुला कर।जो फेड्रालिज्म के विरुद्ध हैं ऐसा सिद्धू ने भी विरोध उठाते हुए बोला हैं।
इससे ये स्पष्ट हैं कि अब पंजाब सरकार दिल्ली से चोर दरवाजे से नॉन पंजाबी चलायेगा।ये पंजाबी प्राइड का अपमान हैं।और शायद पंजाब के लोगों के मन नहीं भाएगा।चुनावों समय भी ये माना जाता था कि केजरीवाल दिल्ली छोड़ पंजाब में मुख्य मंत्री बन जायेंगे।लेकिन वहां के लोग किसी नॉन पंजाबी को मुख्य मंत्री बनते देख नहीं पाएंगे ये भी अवधारणा थी। पंजाब में बिजली की कमी हैं, 6 से 8 घंटे बिजली गायब रहती हैं।कोयले की कमी के रहते ये हालत हुए हैं और पंजाब के पास पैसों की भी किल्लत हैं काफी कर्ज में डूबा हुआ प्रदेश हैं पंजाब,तो जहां बिजली हैं ही नहीं वहां फ्री देने का एलान करना और उस पर विश्वास करना दोनों ही गैर जिम्मेदाराना हरकतें हैं।
एक और बात हैं केजरीवाल का अतिविश्वास कि बीजेपी उससे पंगा नहीं लेगी,ये मानना भी सही हैं उनका, क्योंकि जब करोना काल में ऑक्सीजन कांड कर केंद्र को बदनाम करने की कोशिश करने और डीटीसी की बसें चला कर यूपी और हरियाणा के प्रवासी मजदूरों को दिल्ली से बाहर भेजने के बावजूद उस ओर कोई तीव्र प्रतिघात नहीं आया हालांकि एक जांच जरूर बैठाई गई थी।
सबसे ज्यादा अपनी जिम्मेवारियों को दूसरों पर डालने के मौके अब खो जायेंगे क्योंकि दिल्ली में हुए प्रदूषण का सारा दोष पंजाब और यूपी में जलती पराली को दे खुद आबाद बच जातें थे और के देते थे पंजाब सरकार चाहें तो एक दिन में दिल्ली का प्रदूषण दूर हो सकता हैं।लेकिन अब तो पंजाब में आम आदमी की ही सरकार हैं।
आने वाले दिनों में केजरीवाल की मुश्किल बढ़ती जायेगी,दो जगहों पर मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनका महत्व उतना बढ़ेगा नहीं या कहें कि उनको बीजेपी वाले बढ़ने देंगे ही नहीं।
वैसे भी उनकी देश विरोधी नीति और महत्वकांक्षा हैं,जो उनके ही बिछड़े साथी ने ही बताते हैं उससे कोई भी अनजान नहीं हैं तो गुजरात या दूसरे राज्यों के लोग कितना विश्वास करेंगे ये भी सोचने वाली बात हैं।
वैसे सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म को पैसे से खरीद ने में माहिर केजरीवाल को लोग fb पर डाली सर्वे में नकारात्मक जवाब ही देते हैं।और केहतें हैं ये दिल्ली या पंजाब नहीं हैं,ये गुजरात हैं जो चाहे रुपिए की तीन अट्ठानी मांगे वैसे हैं किंतु मुफ्त वाला फॉर्मूला यहां नहीं चलने देंगे।
अब देखें गुजरात के लोग को उनकी राजनीति कितना लुभा पाती हैं?
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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