कुछ भी, सब कुछ नहीं!

कुछ भी, सब कुछ नहीं!

कुछ भी, सब कुछ नहीं!
अक्सर हमने देखा है, कि हम सब कभी कभार यह कहते हैं, यह मेरा सब कुछ है, मेरा कैरियर मेरा सब कुछ है, मेरा जीवन साथी मेरा सब कुछ है, मेरे बच्चे मेरे सब कुछ है और आजकल तो, बहुत से लोग वस्तुओं को भी सब कुछ मानने लगे हैं! यह सब कहते हुए हमें बहुत अच्छा लगता है, कि कोई हमारे जीवन में इतना महत्वपूर्ण है, कि हमारी खुशी की वजह है, हमारे लिए सब कुछ है, उनके लिए हमारी जान भी हाजिर!

चलिए जरूरत पड़ने पर, अपनी जान को भी हाजिर कर देना चाहे वह अपनों के लिए हो या इंसानियत के लिए! पर एक बार हमें बैठकर यह सोचने की जरूरत है की यह कहां की समझदारी हुई, हम किसी पर निर्भर हो गए, हमारी खुशियां किसी पर निर्भर हो गई और कभी-कभी तो हमारी सांसे भी किसी पर निर्भर हो गई!

आजकल हम सभी को और अपनों को यह सिखाते हैं कि हमें आत्मनिर्भर होना है, पर यहां आत्मनिर्भर सिर्फ धन से ही होना है? जी नहीं, आत्मनिर्भर होने का मतलब यह भी है कि हम, प्रेम, खुशी, शांति, सकारात्मकता के लिए किसी वस्तु, इंसान, परिस्थिति पर ना निर्भर होते हुए, स्वयं पर हो जाए!

चलिए इसे ऐसे समझते हैं, पहले के वक्त में, स्त्रियां घरेलू कार्य करती थी और पुरुष कमाने जाया करते थे, कभी यह किसी ने नहीं सोचा होगा कि इसके विपरीत भी होगा और समानता भी आएगी, आते-आते आ गई और यह इंसानियत का सबसे बड़ा अस्तित्व है, जो कि हमें समानता समझाता है और कोई भेदभाव नहीं! वैसे ही आज हमारे लिए यह कठिन जरूर है, कि हम किसी पर निर्भर ना हो!

कोई वस्तु हमसे छीन जाए, कोई इंसान दूर चला जाए, कोई परिस्थिति बदल जाए और अगर वह हमारा सब कुछ हे, तो उस दिन हमारे जीवन में घनघोर अंधेरा आजाता है, तनाव, डिप्रेशन, मानसिक पीड़ा, हम इस सब के बुरी तरह से शिकार हो जाते हैं!

अगर हम चाहते हैं, कि हम तन मन धन से खुश रहे, तो हमें संतुलन बनाने की जरूरत है इन तीनों में!
हमारे जीवन में खुश रहने, शांति के लिए और सकारात्मकता के लिए बहुत से कारण होने चाहिए, जैसे कि पढ़ना, रिश्ते निभाना, कमाना, स्वास्थ्य का ध्यान रखना, इंसानियत के लिए कुछ करते जाना और भी बहुत सी चीजें कि कुछ चला गया तो कुछ है और जीने की वजह, खुश रहने की वजह, सकारात्मक विचारों की वजह, शांति की वजह हमारे पास अनगिनत मौजूद रहे और सबसे महत्वपूर्ण हम खुद, हम स्वयं, हमारा मन, आत्मा, हमारी अंतर्गत शांति, उसकी वजह बने!

हमारे जीवन में कुछ भी आए, तो आते ही स्वयं से सच कहें, कि यह सब कुछ नहीं, यह हर समय नहीं,
इस धरती पर हर चीज, हर व्यक्ति, हर परिस्थिति अस्थाई है, कभी भी कुछ भी बदल सकता है, कभी भी कोई भी बदल सकता है, कभी भी कुछ भी छूट सकता है!

अगर हम जीवन को पारदर्शिता के साथ देखें और सत्य को अपनाएं, हमें प्रसन्न चित्त होने में वक्त तो लगेगा पर हम शांति हर पल महसूस करेंगे! किसी को पाने की खुशी और खोने का गम इतना ज्यादा नहीं होगा क्योंकि सब संतुलित होगा! हमें अपने वक्त को बांटने की जरूरत है और यह जानने की जरूरत है कि हम किसी वस्तु, किसी परिस्थिति या किसी व्यक्ति को अपनी आदत तो नहीं बना रहे हैं!

हमें एक बात शांति से सोचने की जरूरत है, अगर हम किसी वस्तु, किसी व्यक्ति और किसी परिस्थिति को सब कुछ मान लेते हैं, तो जब वह हमसे दूर होने लगती है या चली जाती है तो हम उसे सकारात्मकता की जगह, नकारात्मकता दे देते हैं!
हम इतने कमजोर हो जाते हैं, कि उसे ठीक करने की जगह, उसकी मदद करने की जगह, हम खुद ऐसी परिस्थिति में आ जाते हैं की हमें किसी की सहायता की जरूरत होने लगती है!

अगर हम चाहते हैं, कि हम मजबूत रहे और अपनों की सहायता कर सकें, परिस्थितियों को संभाल सके, खोई हुई वस्तु को वापस ला सके, तो हमें अटैच ना होते हुए डिटैच होकर सभी से प्रेम करना होगा! अगर हमारे पास धन ज्यादा है तो ही हम किसी की सहायता कर सकते हैं, वैसे ही हमारे पास प्रेम ज्यादा है तो हम किसी को प्रेम दे सकते हैं, हिम्मत ज्यादा है तो किसी की हिम्मत बन सकते हैं, धैर्य ज्यादा है तो किसी को धैर्य दिला सकते हैं और अगर हम अपना ख्याल अच्छे से रख रहे हैं तो किसी और का भी ख्याल रख सकते हैं!

जरूरत है तो सबसे पहले हम खुद को संभाले, खुद को प्रेम दे, स्वयं का ख्याल रखें, स्वयं में सकारात्मकता और धैर्य भरे, स्वयं के पास हर चीज इतनी हो कि जब देने की बारी हो तो देते हुए घबराहट ना आए!

बने संपूर्ण, हो जाए आत्म निर्भर,
कुछ खोने, छुटने या बिछड़ने का ना हो डर,
कुछ भी, सब कुछ नहीं, यही सच है,
तू और न बिखर, हर समय में निखर!!

डॉ. माध्वी बोरसे!
विकासवादी लेखिका!
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