मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

 मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
ये नाम स्मरण के लिए किसी भी सनातनी को कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता।जिव्हा के उपर सदा ही रहता हैं,उठते, बैठते, चलते ठोकर लगते,सोने के समय पर,उठने के समय कहें तो सुबह– शाम ,दिन– रात हर वक्त उनका नाम अनायास ही जिव्हा पर आ ही जाता हैं ।श्री राम की जीवन में उनके विद्याकाल से ही,गुरु महर्षि विश्वामित्र के आश्रम  में जहां उन्हें शास्त्रों का और धनुर्विद्या का शिक्षण दिया गया था,वहीं से संकटों का सामना करने की शुरुआत हो गई थी।जब महर्षि विश्वामित्र हवन करते थे तो उनके हवन कुंड में राक्षस हड्डियां डाल उन्हे परेशान करते थे तब श्री राम जो उनके शिष्य थे उन्होंने ही अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ मिलके उन्होंने अपनी धनुर्विद्या के बल पर सभी को मार भगाया था।ये सभी प्रसंगों से उनकी बहादुरी के प्रमाण मिलते हैं। वहीं सीता के स्वयंवर में भी उनकी प्रतिभा और शौर्य के प्रमाण मिलते हैं।

 वैसे उनके मातृप्रेम,पितृप्रेम और भ्रातृप्रेम अतुलनीय हैं।उनके सांसारिक,आध्यात्मिक,धर्म,नीति आदि की मर्यादा ने ही उनको मर्यादापुरुशोत्तम बनाया हैं।उनकी सरल जीवनी और अपने समर्पितो की और श्रद्धा ही पूजनीय हैं,चाहे वह बाली,सुग्रीव या हनुमानजी ही क्यों न हो? सभी को अपने अपने कर्मो के अनुरूप ही फल मिला था।सुग्रीव ने अनाचार किया तो उसका वध निश्चित था,उसने अपने अनुज की पत्नी  और राज्य दोनों को गलत तरीके से कब्जे जो किया था।

दसों इंद्रियों पर काबू रखने वाले राजा दशरथ के घर में  भगवान विष्णु के अवतार श्री राम ने  जन्म ले उन्हे धन्य कर दिया तो मां कौशल्या की गोद में पलने से भी वे गौरवान्वित हो गई थी।जब भगवान राम चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को इस दुनियां परब्रह्म श्रीहरि प्रगट हुए तो देवों और गंधर्वों ने पुष्प वर्षा कर उनका सम्मान किया था।परमात्मा राम सर्व गुणों के सागर थे और उन्हों ने परिवार,प्रजा और ऋषिमुनियों का रक्षण मर्यादा के अनुरूप ही किया था।दिन,पीड़ित और दुखियों को संरक्षण दे उन्हे न्याय दिया था।

’बिन सेवा जो द्रवे दीन पर,राम सरिस कोऊ नाहीं’

राम कथा का एक एक श्लोक पाप नाशक हैं।उनके साथ हमेशा रहने वाला धनुष्य और बाण में, धनुष्य को ॐकार और बाण को विवेक स्वरूप माना जाता हैं।ज्ञान विवेक ही बुद्धि को सतेज कर दुष्ट बुद्धि और प्रवृत्तियों का नाश करतें हैं।उसी को ज्ञान बोध कहा जाता हैं।उनकी चरण रज से अहिल्या का उद्धार हुआ तो नाविक केवट ने उसी बात को स्मरण कर उनके चरण रज को दूर करने के लिए चरण पखारे थे कि कहीं उनकी नाव भी स्त्री रूप धारण कर लेगी तो उसकी जीवन नैया कैसे चलेगी? बहुत भावनापूर्ण उद्देश से की गई बिनती आज भी भक्त अपने भजन में गाते हैं।

स्वयंवर के बाद राजा जनक ने भी पहचान लिया था भगवान को,

ब्रह्मा जो निगम नेति कहीं गावां–

रामजी साक्षात परब्रह्म हैं।

जब वनवास हुआ तो उन्होंने ऋषि वाल्मीकि को पूछा कि वे कहां रहेंगे तो उनका जवाब था,आप खुद सब जगह पर ही हो और रामनाम अमृत से भी श्रेष्ठ हैं।रामायण का एक एक कांड रामजी का अंग हैं,जैसे बालकांड चरण हैं,अयोध्या काण्ड उनकी जांघ हैं,अरण्यकांड उनका उदर हैं, किशकिंधाकांड उनका हृदय हैं,सुंदरकांड उनका कंठ हैं और उत्तर काण्ड उनका मस्तिष्क हैं।ये सातों कांड जीवन की सिडियां हैं जो उन्नति की और ले जाती हैं।श्रीराम बिना जीवन में आराम नहीं मिलता हैं।उनकी तरह जीवन की राहों पर चलके मर्यादाओं का पालन कर जीवन को संयमित मार्ग पर रह कर जीना सिखाता हैं,यही है राम मंत्र।धर्म और मर्यादा के बिना ज्ञान,भक्ति और त्याग सफल नहीं हो पाते हैं।अगर व्यवहार में हम रावण हैं और राम नाम जपने से फल नहीं मिलता हैं।मनुष्य को जब धन, मान और अधिकार की प्राप्ति होती हैं तो अभिमान आता हैं और वह अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन कर लोगों को प्रताड़ित करना और उनके सम्मान को भी ठेस पहुंचाने लगता हैं।श्री राम जैसा तो कोई बन ही नहीं सकता किंतु उनकी दिखाए रास्ते  पर चलकर हम उनकी भक्ति से शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद

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