अलविदा इमरानखान
वैसे तो वे तीन शर्तों के साथ इस्तीफा देने के लिए तैयार थे ,एक तो इस्तीफे के बाद उनकी गिरफ्तारी न हो,शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री न बनाया जाएं उनके बदले किसी ओर को प्रधानमंत्री बनाया जाएं।
और नएबी के तहत उन पर कोई मुकदमा दायर नहीं किया जाएं।ये सभी शर्तों के साथ अविश्वास की दरख्वास्त में हार ने से पहले भी इस्तीफा देने के लिए तैयार थे। वैसे तो उन्हे आखरी गेंद तक खेलना था किंतु कैसे घर पहुंच गए कोई नहीं जानता था।अविश्वास के प्रस्ताव से पहले ही स्पीकर और डिप्टी स्पीकर ने इस्तीफा दे दिया था।अशांति फैलने के डर के रहते अलर्ट घोषित की गई।सरकारी कर्मचारियों को देश छोड़ने से पहले रोक ने के लिए एयरपोर्ट पर भी हाई अलर्ट घोषित किया गया हैं। ओपोजिशन पार्टी जैसे ही इमरान खान की पार्टी भी सड़कों पर उतर आईं है।इमरान खान ने भी प्रधानमंत्री निवास्थान को छोड़ दिया लेकिन देश छोड़ने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया हैं।ये बाते अब जब शाहबाज नवाज प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए तैयार हैं तो ये बातें अब बेमानी सी लगती हैं।
किंतु एक प्रश्न तो हैं ही ,जब इमरानखान अमेरिका के उपर दोष दे ,सबसे हमदर्दी पाने की कोशिश कर रहें हैं तब सच्चाई क्या हैं उसके लिए बहुत से अनुमान लगाएं जा रहें हैं। उसमें कुछ और बातें भी हो सकती हैं।प्रेसिडेंट बाईडन कोई ईर्षा ग्रसित पड़ोसी तो नहीं हैं जो इमरानखान जैसी शख्शियत की रशिया की मुलाकात से जल उठे और उसे पदभ्रष्ट करने के लिए ऐसे दांवपेच खेले जो इन दिनों देखा जा रहा हैं। इमरानखान का रशिया जाने का और कोई मतलब नहीं निकलता सिवा कि कोई मदद मांगने जाना।पाकिस्तान के पास तो कोई मदद मांगने जाएं भी तो क्या मांगे? उनकी तो अपनी अर्थव्यवस्था बिखरी पड़ी हैं।महंगाई का राक्षस मुंह फाड़े जनता की और बढ़ता जा रहा हैं,जो एफटीएफ की ग्रे लिस्ट में से कब ब्लैक लिस्ट में आ जाएं कुछ कह नहीं सकते उनसे रशिया क्या मांगेगा!न हीं इमरानखान यूक्रेन के साथ संधि वार्ता करवा सकता हैं और कोई दूसरी मदद भी नहीं कर सकता तो इसमें अमेरिका को क्या और क्यों तकलीफ होगी ये भी यक्ष प्रश्न हैं।
दूसरी, सब से अहम बात हैं वह भारत और प्रधानमंत्री मोदी ,दोनों की भूरी भूरी प्रशंशा का क्या अर्थ निकाल सकतें हैं हम? क्या ये मृत प्राय होने से पहले सामने दिखने वाला सच हैं? जब यमराज प्राण लेने आते हैं तो कहतें हैं अपने कर्म आंखो के सामने दिखने लगते और अपनी करनी के लिए पश्चाताप होता हैं, वैसा कुछ हुआ हैं? या फिर मोदीजी के पॉलिटिकल अप्रोच की वजह से खुर्सी खोने का डर था इसीलिए उन्हें खुश करने के लिए ये खेल रचाया गया? कैसे भारत,मोदी जी और भारतीय सैन्य एक साथ ,इतने सालों के बाद गुणगान गाने लायक बन गाएं? मतलब ये डर की बोली थी शायद! या फिर बाजवा का साथ और हाथ छूट जाने से अपनी गर्दन बचाने के लिए सहारा ढूंढा जा रहा था? कुछ भी हो किंतु एक बात माननी पड़ेगी,जो कुछ भी हुआ वह अकल्पनीय हैं।न तो इमरानखान की जान लेने की कोशिश हुई,सुप्रीम कोर्ट की इन्वॉल्वमेंट रही, न कोई आर्मी ने कू किया और न हीं कोई खुनखराबा हुआ,यानी बेनजीर एपिसोड की तरह न तो बम फूटे और न ही किसी को फांसी लगी, इतनी बार सत्ता पलटी हुई लेकिन इस बार की तरह सामान्य हालत में नहीं हुई।मुशर्फ को देश से भागना पड़ा,नवाज शरीफ के भी वहीं हालात हैं। अब आगे क्या हो कुछ कहा नहीं जाता।
इफ्तदा ए इश्क में रोता हैं क्या?
आगे आगे देखो होता हैं क्या?
अब देखें आगे शरीफ जब सत्ता संभालेंगे तब अपने भाई के साथ जो हुआ उसके बदलें लेंगे या कुछ और? क्या परिस्थितियां पैदा होती हैं या की जाती हैं वह तो समय ही बताएगा।
एक बात स्पष्ट हैं कि बिनअनुभवी बिलावल भुट्टो या मरियम नवाज जिसने अहम भूमिका निभाई हैं इमरानखान को हटाने में उन्हे प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया लेकिन अनुभवी शहदाब नवाज जो पंजाब के चीफमिनिस्टर रह चुके हैं उन्हे ही प्रधानमंत्री बनाया जा रहा हैं।अपने देश में तो अनुभव हो या नहीं लेकिन बनाना हैं तो प्रधानमंत्री ही।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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