अपेक्षा और हम- अनिता शर्मा झाँसी

अपेक्षा और हम

अपेक्षा और हम- अनिता शर्मा झाँसी
हर रिश्ता सुन्दर प्यारा सा है।हमारे अपने दिल के करीब रहते हैं।सभी प्यारी भावनाओं से जुड़े रहते हैं।पर....
कभी-कभी हम उनको समय ही नहीं देते कि वे अपने निर्णय लेकर अपनी जिंदगी जियें।आज के दौर में अगर बात करे परिवार की तो माता पिता अपने बच्चों पर अपनी आशाओ और अपेक्षाओ को जाने अनजाने उन पर थोप रहे।जिसका सीधा असर बच्चे की भावना मन-मस्तिष्क पर पड़ता हैं।और वह कुंठाग्रस्त हो जाता है।जो क्षमता उसके अंदर है वह भी अपेक्षाओ के बोझ तले दब कर रह जाती है।
क्यों न बच्चे का स्वभाविक विकास करें,उसकी क्षमताओ को विकसित होने दे तब उन क्षमताओ के विकास मे योगदान दे।
यदि दूसरी ओर नजर डालें तो पायेंगे पति पत्नी से बहुत सी अपेक्षाए रखता है और पत्नी पति से।ठीक यहीं से रिश्तों में दरार खटास आने लगती है मनमुटाव फालतू के झगड़े जन्म लेते हैं।सौहार्दपूर्ण सामन्जस्य की आज के दौर में परम आवश्यकता है।
अब बात करते है ससुराल में बहु से अपेक्षाओ के दौर की........
एक नयी नवेली दुल्हन ससुराल में कदम ही रखती है कि उस पर चौतरफा अपेक्षाओ का पहाड़ टूट पड़ता है।सास की अपनी अपेक्षाए,नंन,जिठानी और पति ।
सभी की अपेक्षाए पनपने लगती है और जो लाड प्यार में पली दबकर घुटकर रह जाती है।
अब बात करे आर्थिक रूप से परिवारिक सदस्यों की अपेक्षाओं की तो लेना सब चाहते देना कोई नहीं।यदि किसी एक सदस्य ने उन्नति कर ली तो अपेक्षा शुरू हो जाती है और यदि पूरी न हो पाई तो ईर्ष्या द्वेष छींटा कशी का दौर शुरू हो जाता है।सारा दोषारोपण बड़े आदमी पर..... घमंडी अंहकारी इत्यादि।
जीवन को सरलता से भी जिया जा सकता है।अपेक्षा को स्वयं से दूर रखकर।स्वयं पर विश्वास रखकर।आत्मोन्नति के मार्ग पर कठिन परिश्रम से।
जीवन हमारा है हम क्यों इसे अपेक्षा-उपेक्षा के दलदल में फंसाकर कीचड़ में गिरे।हम मन के विचारों को संयत रखकर शान्ति से रहें और परिवार समाज का वातावरण सुखमय बनाये।
याद रहे अपेक्षा ही उपेक्षा की जननी है।।।

अनिता शर्मा झाँसी

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