टिकाऊ जीवन शैली अपनाएं

 टिकाऊ जीवन शैली अपनाएं 

टिकाऊ जीवन शैली अपनाएं

निष्क्रिय जीवन शैली और अस्वास्थ्यकर आहार की आदतों से उत्पन्न ख़तरों के बारे में जागरूकता पैदा करना ज़रूरी 

युवाओं में बढ़ते फास्ट फूड के प्रचलन से उत्पन्न स्वास्थ्य ख़तरों को रेखांकित करना समय की मांग - एड किशन भावनानी 

गोंदिया - एक ज़माना था जब हमारे घरों में माताएं लकड़ी और कोयले से जलते चूल्हे पर रोटी और चावल पकाते और हम सामने बोरा बिछाकर बैठ देखते थे और पलभर में थाली में भोजन परोसा जाता था और हम ग्रहण कर बाहर प्रकृति की गोद में खटिया पर बैठकर या झाड़ों के बीच चक्कर लगाते या अपने कार्य पर चले जाते थे!!! यही प्रक्रिया हमारे बड़े बुजुर्गों, पिछली पीढ़ियों और कई गांव शहरों में आज भी शुरू है!और खासियत है कि ऐसे लोगों में किसी भी प्रकार की बीमारी का कोई लक्षण नहीं था, पाश्चात्य संस्कृति का कोई लक्षण नहीं था, सीमित जिंदगी और सुखी जिंदगी की वह स्थिति!! आज उस ज़माने की बात करें कर कहते हैं न जाने कहां गए वो दिन!! इस प्रकार की पुरानी यादों की बात वरिष्ठ नागरिक करते हैं तो सुनकर बहुत आश्चर्य और अच्छा लगता है!!! उत्साह होता है कि ऐसी सुखी जिंदगी जीने की!! यह थी टिकाऊ जीवन शैली!! 

साथियों बात अगर हम वर्तमान जीवन शैली की करें तो इसके लिए उपरोक्त पुरानी टिकाऊ जीवन शैली की चर्चा करना बेहद ज़रूरी था जिसकी प्रित्यक्ष रिपोर्टिंग मैंने बुजुर्गों से की इसी जीवन शैली का नतीज़ा हमारे सामने माननीय पीएम द्वारा उल्लेखित 126 वर्षीय पदम पुरस्कार से सम्मानित बाबा शिवानंद का है जो पूरे विश्व के सामने एक मिसाल कायम है। 

साथियों बात अगर हम वर्तमान निष्क्रिय जीवन शैली और अस्वास्थकर आहार की करें तो वर्तमान में हम देख रहे हैं कि अनेक चाइनीस फूड, पिज़्ज़ा जैसे सैकड़ों ऐसे फास्ट फूड हैं जिसपर आहार के रूप में हमारी निर्भरता बढ़ गई है हमनें हर दिन या हर दूसरे तीसरे दिन इनको ग्रहण करने के का प्रचलन कायम कर दिए हैं। 

हालांकि यह फास्ट फूड ग्रहण करने का हमारा विरोध या टीकाटिप्पणी नहीं है परंतु हमारा उद्देश्य अस्वास्थ्यकर आहरों की आदत से उत्पन्न खतरों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है क्योंकि अगर हम दशकों पुराने ज़माने और आज के जमाने की निरंतर बढ़ती खाई, अस्वास्थ्यता, बीमारियों का प्रकोप, स्वास्थ्य स्थिरता, शारीरिक कष्ट इत्यादि सैकड़ों स्वास्थ्य खतरों की करें तो यह समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। 

अगर हम खासकर वर्तमान पीढ़ी, देश का भविष्य बच्चों और युवाओं को इस बढ़ते फास्ट फूड के प्रचलन से उत्पन्न स्वास्थ्य खतरों को रेखांकित नहीं करा पाए तो यह गैप बहुत बढ़ जाएगी और हमारी ओरिजिनल भारतीय आहार संस्कृति, टिकाऊ जीवन शैली, विलुप्तता की ओर बढ़ने लगेगी इसलिए समय आ गया है कि हम युवाओं में इसके प्रति जागरूकता अभियान चलाकर उन्हें सचेत करें। 

साथियों बात अगर हम पुरानी टिकाऊ जीवन शैली और वर्तमान जीवन शैली के अंतर की करें तो हमने कई बार सुना होगा,, दादा जी तुम तो पुरानी मज़बूत हड्डियों से बने हो! तुम्हारे पास पुराने ही घी मक्खन की ताकत है!! तुम पुराने ज़माने के सोने के अंडे खाए!! लाभ पाए हो!!! इत्यादि इत्यादि बातें हम करते हैं जो बिल्कुल सच है परंतु यह असर कोई शक्तिशाली विटामिन का नहीं बल्कि टिकाऊ जीवन शैली, स्वास्थ्यकर आहार, नियमित कसरत, अपार मेहनत, प्रकृति की गोद में बिताए लम्हों की ताकत है जो स्वास्थ्य और शरीरको मजबूत और टिकाऊ बनाए हुए हैं इसीलिए हर बड़े बुजुर्ग का कर्तव्य है कि वह अपने मार्गदर्शन से एक सामाजिक टीम खड़ी कर युवाओं को हेल्दी फूड स्वस्थ्य आहार की आदत, पाश्चात्य जीवन शैली का त्याग, तेजी से बदलती जलवायु परिवर्तन के घातक परिणामों से सबक जैसे अनेक मुद्दों को रेखांकित कर युवाओं को मार्गदर्शन, जन जागरण अभियान चलाकर प्रेरित करें। 

साथियों बात अगर हम अस्वास्थ्यकर आहार के खतरों पर देश में बने कानूनों, नियमों, विनियमों, राज्य स्तरीय कानूनों, शासन, प्रशासन की करें तो हालांकि उपभोक्ता कानून सहित अनेक नियमों कानूनों में इस संबंध में सख्त धाराएं हैं परंतु ज़रूरत उस सख्ती के साथकानून लागू करनें की, जनता को जागृत करने की,अधिकारियों में जांबाजी और जज्बे की, जिसके बल पर कुछ कानून का सहारा, कुछ जनजागरण का सहारा, प्रोत्साहन सतर्कता इत्यादि के बल पर हम इन से बचकर एक टिकाऊ जीवन शैली,स्वास्थ्यकर आहार, आदतों को अपनाकर अपने शरीर, स्वास्थ्य, जीवन को सुरक्षित और सकारात्मक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। 

साथियों बात अगर हम दिनांक 10 अप्रैल 2022 को माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो इस विषय पर उन्होंने भी कहा, भारत में गैर- संचारी रोगों में वृद्धि की चिंताजनक रूझान को रेखांकित करते हुए उन्होंने निजी क्षेत्र में चिकित्सा संस्थाओं से लोगों, विशेष रूप से युवाओं के बीच एक निष्क्रिय जीवन शैली और अस्वास्थ्यकर आहार की आदतों से उत्पन्न खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करने का आग्रह किया। उन्होंने लोगों से निष्क्रिय जीवन शैली का त्याग करने और स्वस्थ जीवन जीने का तरीका अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी और तेजी से बदलती जलवायु हमें हमारी आदतों और जीवन के तरीके के बारे में कई सबक सिखाती है। उन्होंने प्रकृति की गोद में अधिक समय व्यतीत करने और अधिक टिकाऊ जीवन शैली अपनाने की अपील की।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि टिकाऊ जीवन शैली अपनाएं। निष्क्रिय जीवन शैली और अस्वास्थ्यकर आहार की आदतों से उत्पन्न खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करना ज़रूरी है। युवाओं के बढ़ते फास्ट फूड के प्रचलन से उत्पन्न स्वास्थ्य ख़तरों को रेखांकित करना समय की मांग है। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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