ग़ज़ल - हार जाता है
ग़ज़ल - हार जाता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी |
गुरुर बड़ा होने का है मगर ये जान लो यारों
प्यास की बात आती है तो समंदर हार जाता है
जिसे था गुमां ये के दुनियाँ जीत ली उसने
फिर क्यों मौत के आगे सिकंदर हार जाता है
हवाएं ताजगी देतीं हैं वैसे आदतन हरदम
आँखों में धूल झोंककर बवंडर हार जाता है
दुविधा में पड़ा मानव है इसकदर भटका
के रास्ता बताने में हर रहबर हार जाता है
खिलाए थे जिन बच्चों को आम भरभर के
डाली काट जाएँ वे ही तो तरुवर हार जाता है
कुल्हाड़ी में लगी लकड़ी खुद शजर की हो
तो खाकर अपनों से धोखा शजर हार जाता है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
शजर -वृक्ष