लघुकथा बुजुर्गों का सम्मान

 लघुकथा
बुजुर्गों का सम्मान

सुधीर श्रीवास्तव
सुधीर श्रीवास्तव

      बीते समय में बुजुर्गों का सम्मान करना एक परंपरा ही थी, जिस पर आज आधुनिकता का रंग चढ़कर घायल कर रहा है।

       देवन अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। वो अपने माता पिता की बहुत इज्जत भी करता था। मगर कुछ समय से वह उनकी भरपूर उपेक्षा करने लगा। दोस्तों की बुरी संगत का असर उस पर हावी हो गया था। उसकी पत्नी दिशा भी उसके इस बदलाव से दुखी थी, पर विवश भी थी। मायके में कोई था नहीं। बड़े बुजुर्गो के नाम पर सास ससुर ही थे। जिन्हें वो जान से ज्यादा प्यारे थे।अपनी सामर्थ्य से अधिक वो उनका भी ख्याल रखती थी।

        परंतु एक दिन तो हद हो गया,जब देवन ने पिता के साथ मारपीट की, माँ को धक्का दे दिया। माँ के सिर में गहरी चोट आई।

         दिशा ने बिना किसी झिझक के पुलिस बुला कर देवन को गिरफ्तार करवा दिया। गिरफ्तार देवन से उसने कहा - जो व्यक्ति अपने माता पिता का सम्मान नहीं कर सकता, उसकी पत्नी बनकर जीने से अच्छा है कि मैं विधवा हो जाऊं ?  आज से इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए बंद हो गए हैं। जब तक माँ बाबूजी जीवित हैं, मैं कैसे भी उनका ख्याल रख लूंगी, मगर तुम जैसे अधमी का मुंह नहीं देखूंगी।

         देवन के माता पिता और पुलिस वाले दिशा के इतने कठोर फैसले पर असमंजस से दिशा को देखते रहे।

सुधीर श्रीवास्तव

गोण्डा उत्तर प्रदेश

८११५२८५९२१

© मौलिक, स्वरचित

०४.०५.२०२२

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