शिवसेना ने चाणक्य से पंगा लिया हैं (बोलो क्या क्या बचाओगे)
July 02, 2022 ・0 comments ・Topic: Jayshree_birmi lekh news
शिवसेना ने चाणक्य से पंगा लिया हैं (बोलो क्या क्या बचाओगे)
जब से महाराष्ट्र में तीन पहिए वाली सरकार बनी हैं कुछ न कुछ तिकड़म चलता ही रहता हैं।वैसे भी ’तीन तिगड़े काम बिगड़े’ आम तौर पर कहा जाता जाता हैं और यही हो रहा है महाराष्ट्र में।पहले पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या के मामलों में सरकार का जो अभिगमन देखने को मिला वह उनको बदनाम करने के लिए काफी थी।उसके बाद सुशांत की हत्या या आत्महत्या प्रकरण में भी उद्धव सरकार ने काफी कुछ साख खो दी थी।और जब सुशांत के केस में बात बिगड़ती नजर आई तो रिपब्लिक tv के मालिक और एंकर के साथ हुए केस और अमानवीय व्यवहार से पता लग रहा था कि सरकार में से किसका तो संबंध था इन मामलों में।
उसके बाद सरकार के चमचों की श्रेणी में आते हुए सचिन वाजे के सारे कार्यकलाप बहुत ही संदिग्ध थे उनकी suv गाडी में नोट्स गिनने की मशीन का मिलना गवाह ही गिना जाएगा कि कितनी वसूलियां की जा रही थी महाराष्ट्र सरकार में? उसके अलावा वाजे के सुप्रीमो परमवीर सिंघ की संदिग्ध गति विधियों के बाद डिमोशन और बाद में अरेस्ट भी किया गया और फिर गायब होने के बाद कुछ अता पता नहीं होना भी कुछ न कुछ संकेत दे ही रहा है जिससे एक बदनुमा दाग तो लग ही गया।उसके बाद ncp के सदस्य और महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख की वसूलियों में इनवॉल्वमेंट होने की वजह से गिरफ्तारी के पहले शरद पवार का प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्हें बेकसूर साबित करने की कोशिश के बावजुद हुई गिरफ्तारी बहुत कुछ चिन्हित करती हैं।
अब जब राजकीय संकट में शिवसेना प्रमुख घिर गए हैं तब महाराष्ट्र में राजकीय जलजला उठ चुका हैं
उसके बाद देखें तो मुकेश अंबानी के घर के पास मिली जिलेटिन स्टिक्स भरी गाड़ी के बाद का घटना क्रम देखें तो उसमें सचिन वाजे की भूमिका संदिग्ध थी।गाड़ी के मालिक हसमुख हिरण के साथ वाजे का कनेक्शन साबित भी हो गया था, वाजे का इतिहास जितना संदिग्ध था उससे ज्यादा संदिग्ध उसकी टर्मिनेशन के बाद की गई नियुक्ति भी थी। कंगना रनौत के साथ हुए अन्याय भी सुशांत प्रकरण के साथ जुड़ा हुआ हैं जिसने उसे मानसिक प्रताड़ना देने के लिए उसके घर पर बुल्डोजर चलाया गया था और संजय राउत ने बहुत ही गंदे ट्वीट किए थे और कंगना के बारे में अनाप शनाप विवादित बयानबाजी भी की थी।
लेकिन इन सब में उनके भागीदारी के सभ्यों पर कोई असर होता दिखता नहीं था तो सब में शिवसेना ही क्यों जिम्मेवार हुई,थोड़ा बहुत एनसीपी भी इन्वॉल्व दिखी थी।क्या पुत्र प्रेम में रत उद्धव जी युधिष्ठिर बन रहें हैं क्या? या कांग्रेस के कदम से कदम मिला कर परिवारवाद की नींव डाल रहे हैं!
अब जब ढाई सालों बाद अपने ही विधायकों के द्वारा विद्रोह हो रहा हैं उसके बहुत से कारण बताएं जाते हैं।
एक तो बालासाब ठाकरे के जूतों में पांव रखने की कोशिश की जिसके काबिल वे थे ही नहीं।दूसरा हिंदुत्व जो शिवसेना दल की नसों में बहता रहा हैं उसका त्याग करना।तीसरा सत्ता लॉलूप बन उस कांग्रेस का साथ लेना जिसके साथ बाला साब ठाकरे स्टेज तक सांझा करना नहीं चाहते थे।कश्मीर से जब 370 हटाई तो समर्थन नहीं किया और कांग्रेस की बोली बोल रहे थे।शहींबाग के मामले में भी उनका समर्थन किया गया।बाला साब के दूसरे असूलों का भी उलंघन करना भी उद्धव के विरुद्ध में काम कर गया हैं।इन्ही वजहों से आज एकनाथ शिंदे कुछ विधायकों को साथ ले बगावत पर उतर आए हैं जिनकी मांग हैं कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन से शिवसेना की साख को हानि पहुंची हैं। उद्धव ठाकरे के बार बार बिनती करने पर उन्होंने शर्त रखी कि गठबंधन से मुक्त होने पर ही वे वापस आ सकतें हैं।सब ही अपने को शिवसेना के प्रति निष्ठा रखने के बावजूद कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन से। शिवसेना का मुक्त होना अनिवार्य हैं जो उद्धव ठाकरे को मंजूर नहीं हैं।मुख्य मंत्री का अधिकृत आवास वर्षा को छोड़ वे मातोश्री अपने बड़े बड़े बैग ले कर पहुंच चुके हैं लेकिन मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा दिया नहीं हैं।इसके कुछ तो कारण होगा,या तो कुछ जरूरी पेपर्स का इंतजाम करना,कुछ ओर भी इंतजामियां प्रवृत्तियां भी बाकी हो सकती हैं।
एकनाथ शिंदे के समर्थन की बात देखें तो सूरत में उनके साथ 17 विधायक थे जो गुवाहाटी पहुंचते पहुंचते 37 हो गए और उनकी संख्या 50 तक होने की बात भी की जा रही हैं।इधर उद्धव के खेमे में विधायकों की संख्या कम होती जा रही हैं वहीं शिंदे के खेमे में बढ़ती जा रही हैं।ये सच हैं कि शिंदे के खेमे में विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही हैं वह फ्लोर टेस्ट तक कायम रहेंगे ये भी प्रश्न हैं।
दोनों पक्षों ने अपनी अपनी और से स्पीकर को अपनी अपनी विधायकों की संख्या के बारे में रिपोर्ट कर दी हैं ।
अब जो परिस्थितियां हैं वह सिर्फ मुख्य मंत्री पद के लिए नहीं है वरना जब उद्धव ठाकरे ने शिंदे को मुख्य मंत्री की कुर्सी को देने का ऑफर किया था तब वापस आ सकते थे।वैसे जब सरकार का गठन हो रहा था शिंदे भी मुख्य मंत्री पद के दावेदार थे किंतु सोनिया गांधी और शरद पवार की पसंद उद्धव ठाकरे होने से शिंदे को पार्टी में सम्मानजनक पोस्ट कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
जब ये सब सूरत पहुंचे तो ये सब एकाएक हो गया ऐसा नहीं हो सकता लेकिन बात थोडा भ्रमित करने वाली हैं।इतनी बड़ी संख्या के विद्रोह की बात, सूरत में होटल रूम्स बुक करना,चार्टर प्लेन की बुकिंग आदि उनके खुफिया विभाग या पुलिस विभाग की जानकारी में नहीं आया ये अचरज की बात या तो फिर मानने में नहीं आने वाली बात कही जा सकती हैं।या कुछ छल हो रहा हैं गठबंधन की भीतर ही,होम मिनिस्ट्री तो एनसीपी के पास हैं तो शंका की सुई कहां अटकी हुई हैं ये सोच लो।
अब ये कुछ अलग ही रूप ले रहा हैं,एकनाथ का हर बार बालासाब का नाम ले शिवसेना के असली हक्कदार वे लोग हैं क्योंकि वे लोग उनके आसूलों के साथ हैं ।जब हनुमान चालीसा का प्रकरण चला तब को दमन और हिंदुविरोधी आचरण की वजह से भी शिवसैनीकों में क्रोध की भावना प्रबल होती गई।जिसने संभाजी की आंखे निकली उसी की मजार पर पुलिस रक्षण देना और उसकी मजार पर सजदा करने वालों से राजकरणीय सपोर्ट लेना भी महंगा पीड गया हैं।
बहुत ही जलद परिस्थितियां बन गई हैं महाराष्ट्र में,जहां मुंबई में ठाकरे पिता पुत्र की शरद पवार के साथ बैठके जिसमे शरद पवार बार बार कह रहें हैं कि उनकी पार्टी तो उद्धव ठाकरे को ही रहेगा,लेकिन कांग्रेस एक दम चुप हैं।वहीं संजय राउत की बार बार टिप्पणियां आती रहती हैं,कभी कहतें हैं जो गए हैं वे तो वापस आयेंगे ही जो थोड़ा आशावादी लगता हैं।तो कभी शिवसैनिकों का नाराज हो सड़क पर आने की धमकी देते हैं और वहीं पर कुछ तोड़ फोड़ के समाचार भी आए थे तो क्या ये मामला सदन के बदले सड़क पर सुलझाने की कोशिश होने वाली हैं।उनके निर्णय को संजय राउत गलत बता कह रहे हैं कि उनको उनके सामने आना ही पड़ेगा।जिस की कोई जरूरत नहीं थी कहने वाले आज चैलेंज दे रहें हैं कि आप आइए देखते हैं।
जैसे एकनाथ शिंदे कह रहे हैं कि उनके पीछे जनता और महाशक्ति हैं जब बीजेपी तो अलिप्त ही दिख रही हैं।शिंदे अपना दावा शिवसेना दल पर ही करने लगे हैं।और शिंदे के प्रवक्ता के अनुसार वे अलग पार्टी बनाएंगे तो भी नाम तो शिवसेना ही रखेंगे,अगर ठाकरे A रखते हैं तो शिंदे B रख लेंगे या फिर उल्टा हो जायेगा लेकिन वे नाम तो शिवसेना ही रखेंगे।रात के अंधेरे में गुआहाटी से रात भर में दिल्ली होके वडोदरा में पहुंचते हैं और देवेंद्र फड़नवीस मुंबई से वडोदरा पहुंच जाते हैं एक दूसरे को मिलने के लिए।क्या बातें हुई उसका कुछ पता नहीं किंतु मुलाकात जरूर हुई हैं।उस वक्त अमित शाह भी वहीं थे लेकिन उनसे मुलाकात होने के कोई प्रमाण नहीं है।
3सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर ये हुआ कि फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करना उद्धव ठाकरे के लिए असंभव ही था तो इस्तीफा देना जरूरी बन गया था।अब बीजेपी और मनसा और शिंदे के सहयोगी सब मिलके शपथग्रहण करने की तैयारियां करने शुरू कर देंगे। सोचा था देशमुख ही मुख्य मंत्री बनेंगे बाकी के मंत्रीपद योग्यता की हिसाब से मिलेंगे यही सोचा था किंतु अब जब लंबे रंगमंच के नाटक को एक अंत मिला तो सही किंतु कितना सुखद होगा वह तो वक्त ही बताएगा।
अब देखें तो संजय राउत की भूमिका क्या मानी जाएं? वह अलग अलग बयानों द्वारा क्या उद्धव ठाकरे को मदद कर रहें हैं या उनका बुरा कर रहें हैं ये समझना बहुत आवश्यक हैं।मेरे हिसाब से तो वे सभी को चैलेंज कर के अनावश्यक टेंशन बढ़ा कर लोगों और शिवसैनिकों को एक दूसरे से दूर करने का कार्य कर रहे हैं। क्या शकुनी जैसा कार्य कर रहे हैं? जिसने अपने ही जीजा से बदला लेने की खातिर अपने भांजों की मृत्यु का कारण बना और उन्हें बदनाम करके छोड़ा वह अलग से, यहां तक कि कौरवों के नाम से कोई अपने बच्चों का नाम नहीं रखता।
वैसे भी शिवसेना ने चाणक्य से पंगा लिया हैं
तो होगा नदवंश का नाश
या फिर टाय टाय फिस्स?
ये तो समय ही बताएगा।
और समय ने बता ही दिया हैं,शिवसेना की तो कुर्सी गई किंतु बीजेपी ने भी क्या पाया? उससे अच्छा था की 2019 में ही उद्धव जी से समझौता कर आधा आधा समय मुख्य मंत्री बनने का समझौता ज्यादा फायदे मंद होना था।इतना फजिता नहीं होता।शिंदे को मुख्य मंत्री की कुर्सी देना भी एक किस्म की पिछेहठ ही कही जायेगी।राजकरण शक्यताओं का खेल हैं।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.