कितने सच है अफसरों पर जवानों की आत्महत्या के आरोप ?

कितने सच है अफसरों पर जवानों की आत्महत्या के आरोप ?

आखिर क्यों दुश्मन की छाती चीरने वाले बन जाते है अपनी ही जान के दुश्मन।

सुरक्षाबलों के प्रशिक्षण के दौरान उन्हें तनाव से निपटने के तरीके बताने चाहिए व म्यूजिक थेरेपी, योग, ध्यान, प्राणायाम जैसे उपायों को पुरजोर अपनाना चाहिए।  पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों कि यह जिम्मेवारी बने कि वे कर्मचारियों की समस्याएं सुने तथा उन्हें सुलझाने का प्रयास करें ताकि बातचीत के द्वारा जवानों की परेशानी समय पर दूर हो सके। सुरक्षाबलों में ऐसे सख्त कानून बनाए जाएं जिनसे अफसरों के द्वारा चेतावनी के तौर पर जवानों से लिए जा रहे घरेलू कामों पर रोक लगे और उनके आत्म सम्मान को ठेस न पहुंचे

-प्रियंका 'सौरभ'

राजस्थान राज्य के राजगढ़ क्षेत्र के गाँव घणाऊ के सीआरपीएफ सब इंस्पेक्टर विकास वर्मा के बाद अब राजस्थान के जोधपुर में स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के ट्रेनिंग सेंटर में सरकारी राइफल से खुद और अपने परिवार को बंधक बनाकर सिपाही नरेश जाट ने सुसाइड किया है, यह सवाल देश भर के अर्धसैनिक बलों को लेकर फिर उठ खड़ा हुआ है. आंकड़ों से ये बात सामने आई है कि पिछले कुछ सालों में देश की सुरक्षा में लगे जवानों में आत्महत्या की दर बढ़ी है। चिंता की बात है कि देश के लिए जान कि बाज़ी लगाने को तैयार ये जवान हालात की दुश्वारियों से इस कदर परेशान हो जाते है कि अपनी ही जान ले लेते है.

 उन्हें अत्यधिक काम का बोझ, घरेलू समस्याएं, मनोरंजन सुविधाओं की अनुपलब्धता, काम में गरिमा की कमी और वरिष्ठों के साथ-साथ अधीनस्थों के साथ संघर्ष आदि जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है। जवानों की आत्महत्या के पीछे सरकार घरेलू समस्याओं, बीमारी और वित्तीय समस्याओं को कई कारणों में मानती है। हालांकि गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति इन आत्महत्याओं के पीछे मानसिक और भावनात्मक तनाव को भी वजह मानती है। वहीं पूर्व अफसरों और जानकारों का कहना है कि जवानों पर वर्कलोड ज्यादा है। कई स्थानों पर जवानों को 12 से 15 घंटे तक ड्यूटी देनी पड़ती है। कड़ी कामकाजी परिस्थितियों, अफसरों के सख्त व्यवहार, पारिवारिक मुद्दों और जरूरत होने पर छुट्टी न मिल पाना भी जवानों को मानसिक तनाव की ओर धकेलता है।

सीआरपीएफ कांस्टेबल नरेश जाट की आत्महत्या के मामले में पुलिस ने डीआईजी भूपेंद्र सिंह समेत छह लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। करीब 18 घंटे तक अपने क्वार्टर में पत्नी और नाबालिग बेटी के साथ खुद को बंद रखने के बाद जाट ने अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मार ली थी।वीडियो क्लिप की सीरिज, जो आत्महत्या के बाद सामने आई, वह तनाव और अलगाव की ओर इशारा करती है जिसका मृतक सामना कर रहा था। जाट को डीआईजी भूपेंद्र सिंह और अन्य के खिलाफ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने और पिछले चार से पांच दिनों से उन्हें ड्यूटी आवंटित नहीं करने की शिकायत करते हुए सुना जा सकता है। सिंह पर उसे ड्यूटी पर सूरतगढ़ भेजने का आरोप लगाने के बारे में सुना जाता है।

कुछ ऐसा ही सात माह पूर्व जोधपुर में सब इंस्पेक्टर विकास वर्मा के साथ हुआ. विकास की पत्नी कविता ने बताया कि जब मेरी बात मेरे पति से होती थी तो वो बताते थे कि अफसर उन्हें परेशान करते है. विकास कि मौत वाले दिन एक सीनियर अफसर ने उन्हें अपने घरेलू काम के लिए टॉर्चर किया. अफसर की बीवी ने सब इंस्पेक्टर से मंगवाए गए पपीते के घटिया होने की बात क्या कही साहब विकास पर आग बबूला हो गए. अपने आत्म सम्मान पर हुई चोट को विकास सहन नहीं कर पाया और उसने कमरे पर जाकर आत्म हत्या कर ली.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि अफसरों और जवानों के बीच तालमेल कैसा है.  जवानों को काम के तनाव और पारिवारिक परेशानी को साथ लेकर चलना होता है. तनाव जब हद से गुजर जाता है तब वे आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं. कई बार आत्मसम्मान को ठेस पहुंचने के कारण भी जवान आत्महत्या करते हैं. पुलिस विभाग में अक्सर देखा गया है कि कर्मी खुद को पावरफुल मानते हैं ऐसे में जब किसी कारण से उनके आत्मसम्मान को ठेस लगती है तो भी वह आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं.

 रक्षा मनोवैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान (डीआईपीआर) ने सशस्त्र बलों के बीच तनाव को कम करने के लिए निम्नलिखित कदमों की सिफारिश की है। ये हैं, 1. छुट्टी के अनुदान को युक्तिसंगत बनाना, 2. कार्यभार में कमी और तैनाती के कार्यकाल को कम करना, 3. वेतन और भत्ते में वृद्धि, 4. अधिकारियों और पुरुषों के बीच बेहतर पारस्परिक संबंध बनाना, 5. तनाव प्रबंधन में प्रशिक्षण कार्यक्रम और 6 बुनियादी और मनोरंजन गतिविधियों को बढ़ाना। सरकार उन्हें तत्काल आधार पर लागू कर सकती है।

एक बटालियन में कर्मियों की तैनाती की प्रणाली की बहाली जब तक वे सब-इंस्पेक्टर का पद प्राप्त नहीं कर लेते, कर्मियों के बीच अपनेपन और बंधन की भावना पैदा करेंगे। जब कर्मचारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों से मिलते हैं तो पूरी गोपनीयता सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि वे अपनी घरेलू समस्याओं को खुलकर सामने ला सकें। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पोस्ट सूबेदार मेजर (एसएम) को सक्रिय करने की आवश्यकता है;  हालांकि सीआरपीएफ के नियम असाधारण रूप से योग्य सूबेदारों/एसएम को मानद पद प्रदान करने का प्रावधान करते हैं, लेकिन इसे शायद कभी लागू नहीं किया गया है। नियमित सहायक कमांडेंट के पदों पर नहीं आने वाले ऐसे मानद रैंकों को सम्मानित करने से उनका मनोबल बढ़ेगा।

 सशस्त्र बलों में भ्रातृहत्या और आत्महत्याओं को रोकने के लिए सशस्त्र बलों में शिकायत निवारण तंत्र को बदलने की आवश्यकता है। साथ ही, सशस्त्र सेवाओं को पर्याप्त कर्मियों के साथ मजबूत करना होगा ताकि उन्हें तनाव से मुक्त किया जा सके और देश की सेवा गर्व के साथ की जा सके। देश के सुरक्षा बल एक अनुशासित बल होते हैं, और उनकी  समस्याओं के निराकरण जिम्मेदारी बल के कमांडिंग ऑफिसर की रहती है। हालांकि सभी बलों में जवानों की समस्याओं के समाधान के लिये सरकार ने बहुत से प्रबंध समय-समय पर कर रखे हैं और उनके आवास, मैसिंग, ड्यूटी पर होने वाली दुश्वारियों के निराकरण के लिये ठोस व्यवस्था की जाती है, फिर भी इतनी अधिक संख्या में होने वाली आत्महत्यायें, न केवल दुःखद हैं, बल्कि बेहद चिंताजनक भी हैं।

सुरक्षा बल, एक परिवार की तरह होते हैं औऱ उसका मुखिया परिवार के प्रमुख की तरह, उसका मुख्य दायित्व भी यह है, अनुशासन के साथ साथ जवानों की समस्याएं चाहे वे निजी हों या पारिवारिक या उनके गांव घर से जुड़ी, वे समय- समय पर अच्छे से हल होती रहें और उनकी वजह से बल के जवानों में कोई अवसाद या स्ट्रेस आदि न पनपे। देखे तो सेना में सैनिक कल्याण बोर्ड जैसी संस्थाए हैं, जो सैनिकों की घरेलू और रिटायरमेंट के बाद की समस्याओं को हल करने में मदद करती हैं, पर दुर्भाग्य ये कि केंद्रीय पुलिस बल और राज्यों की पुलिस के जवानों के लिये ऐसी कोई संस्था नहीं है। लेकिन जवानों का कल्याण, किसी भी बल का एक प्रमुख उद्देश्य होता है, इससे न केवल सुरक्षा बलों के जवानों का मनोबल ऊंचा रहता है, बल्कि वे आत्महत्या जैसी परिस्थितियों की गिरफ्त में नहीं आते हैं।

सुरक्षाबलों के प्रशिक्षण के दौरान उन्हें तनाव से निपटने के तरीके बताने चाहिए वह म्यूजिक थेरेपी, योग, ध्यान, प्राणायाम जैसे उपायों को पुरजोर अपनाना चाहिए।  पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों कि यह जिम्मेवारी बने कि वे कर्मचारियों की समस्याएं सुने  तथा उन्हें सुलझाने का प्रयास करें ताकि बातचीत के द्वारा जवानों की परेशानी समय पर दूर हो सके। और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि जवानों के माध्यम से उनके अफसर उनसे ड्यूटी खराब करने या ससपेंड करने की धमकी देकर घरेलू काम न करवाए. सुरक्षाबलों में ऐसे सख्त कानून बनाए जाएं जिनसे अफसरों के द्वारा चेतावनी के तौर पर जवानों से लिए जा रहे घरेलू कामों पर रोक लगे और उनके आत्म सम्मान को ठेस न पहुंचे। 

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-प्रियंका सौरभ रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

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