हदें

हदें

शान हैं उसी में इंसान अपनी हद में रहें
जब छोड़ हद न समंदर न ही नदी बहेँ
इंसान ही हद न जाने वह हद से बढ़े
बेईमानी की कोई हद ना सदा ही बढे
जूठ के पैर कोई न फिर भी तीव्र चलें
रिश्ते सच्चे बनते जूठे फिर भी निभें
तिजारत भी है बेमानी धोखे से चलें
शिक्षा दीक्षा पढ़ाई सब में धोखा करें
बनावट भरी दुनियां, सब ही शक करें
लिखावट नकली खयालात भी नकली
खबरों की दुनियां भी तो नकली
नेता नकली बेईमान रियाया नकली
असल की खोज में मैं भी तो निकली
पाएं जो जन सत का पाठ वही असली

About author

Jayshree birimi
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद (गुजरात)
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url