"कुछ तो लोग कहेंगे"(अर्शदीप सिंह)

"कुछ तो लोग कहेंगे"(अर्शदीप सिंह)

कुछ तो लोग कहेंगे"(अर्शदीप सिंह)
अर्शदीप सिंह आप किशोर कुमार की गाई इन पंक्तियों को जीवन में उतार लो।
"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना" छोड़ो बेकार की बातों में कहीं छूट न जाए करियर का दामन। सिर्फ़ अपने काम पर फोकस कीजिए। दर्शक स्वार्थी है, उनको हर बार जीत का जश्न ही चाहिए, हार पचाने के आदी नहीं। खेल में कोई एक टीम तो हारेगी ही। और हार या जीत किसी एक खिलाड़ी की जिम्मेदारी नहीं होती, पूरी टीम के सर होती है। माना अर्शदीप से कैच छूट गया, पर क्या बल्लेबाजों की गलती नहीं? 200 के उपर रन फ़टकारते तो पाकिस्तान में दम नहीं जीत सकता।
पर आजकल खेल को खेल नहीं, आपसी दुश्मनी या भड़ास के तौर पर देखा जाने लगा है। कोई भी खेल हो खेलदिली से खेलना चाहिए, एक तंदुरुस्त स्पर्धा होनी चाहिए।
पर पिछले रविवार जो भारत पाकिस्तान मैच के दौरान हुआ, वो ऐसा लग रहा है जैसे सरहद पर जंग छिड़ी हो। क्या क्रिकेट के इतिहास में आज तक किसी खिलाड़ी के हाथों कोई कैच छूटा ही नहीं? जो युवा खिलाड़ी अर्शदीप को इतना ट्रोल किया जा रहा है? शायद ये मैच भारत बनाम पाकिस्तान था इसलिए लोगों का इतना गुस्सा फूट पड़ा। अगर किसी दूसरे देश के साथ होता तो अर्शदीप का कैच ड्राॅप करना किसीकी नज़र में नहीं आता।
अर्शदीप सिंह के कैच ड्राॅप करने पर गुस्सा समझ में आता है। मगर उस एक कैच के लिए उसे विलेन बताना, ज़लील करना, यहाँ तक की खालिस्तानी करार देना कहीं से भी जायज़ नहीं है। खिलाड़ी वैसे भी कैच ड्रॉप करने की गलती के लिए पहले ही अपसेट होता है। ऊपर से इस तरह की चर्चाएँ उसे मानसिक रूप से और तोड़ सकती हैं।
भारत को पाकिस्तान के खिलाफ 5 विकेट की हार का सामना करना पड़ा
इस मैच में अहम मौके पर अर्शदीप सिंह से एक कैच ड्रॉप हो गया, जिसके बाद गुस्से में लोग युवा तेज गेंदबाज को सोशल मीडिया पर जलील करने लगे।
जो समाज अपने सितारों के बुरे समय में उनके साथ खड़ा नहीं होता, हौसला नहीं दे पाता उसे उनके अच्छे वक्त में या सही पर्फामेन्स पर जश्न मनाने का भी कोई हक नहीं बनता।
क्रिकेट में बड़े-बड़े खिलाड़ियों से ऐसी चूक होती रहती है। आज हम अर्शदीप की ड्रॉप कैच पर खफा है, लेकिन सिडनी टेस्ट के आखिरी दिन टिम पेन के 3 ड्रॉप कैच की वजह से ही भारत वो मैच बचा पाया था। तब किसी ने शिकायत नहीं कि या ये कहकर भारतीय बल्लेबाज़ों के कारनामे को कम नहीं किया कि अगर पेन ने पंत और हनुमा विहारी के कैच न छोड़े होते तो भारत मैच हार भी सकता था।
ऐसे ही फूटबाल जैसे खेलों में महारथी भी गलती कर जाते है। रॉबर्टो बैगियो इटली के महानतम फुटबॉलर्स में से एक हैं। मगर उन जैसा खिलाड़ी भी अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े मैच के सबसे बड़े मौके पर चूक गया। ब्राज़ील के खिलाफ़ वर्ल्ड कप की फाइनल के शूटआउट में स्कोर बराबरी के लिए बैगियो को पेनल्टी किक से गोल मारना था। वो गोल कर देते तो स्कोर 3-3 से बराबर हो जाता। मगर वो बॉल को गोल पोस्ट से बहुत उपर मार बैठे और इटली वर्ल्ड कप का फाइनल हार गया। उस मिस पेनल्टी की चूक आज भी बैगियो को कचोटती होगी। पर खेल में कोई परिस्थिति किसी के हाथ में नहीं होती। हर खिलाड़ी अपना शत प्रतिशत देने की कोशिश करता है, क्यूँकि उनकी करियर का सवाल होता है। दर्शकों को दिल बड़ा रखना चाहिए और खिलाड़ी को ढ़ाढस बँधाना चाहिए। दर्शकों का साथ और सराहना खिलाडियों में उर्जा भरता है, और ट्रोलिंग से आत्मविश्वास में गिरावट आती है।

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bhawna thaker

(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

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