सोच को संकुचित होने से बचाएं।

September 21, 2022 ・0 comments

सोच को संकुचित होने से बचाएं।

सोच को संकुचित होने से बचाएं।
अपनी सोच को संकुचित ना होने दें,
इस अपार समझ को कभी ना खोने दें,
असीम है सब कुछ इस ब्रह्मांड में,
हर स्वप्न को स्वयं के नेत्रों में संजोने दे।

अनगिनत ज्ञान को ग्रहण करते चले जाएं,
नेक कर्मों पर विराम चिह्न ना लगाएं,
जीवन का संपूर्ण आनंद ले,
हर लक्ष्य को दृढ़ता से पार कर जाए।

हमारी अंतरात्मा क्या कहती है,
आभास करें हम में कितनी शक्ति है,
स्वयं की अलौकिक सामर्थ्य को पहचाने,
हम नहीं साधारण व्यक्ति है।

बौद्धपूर्वक जीवन है अनिवार्य,
प्रभावशाली हो हमारे सर्व कार्य,
प्रसन्नता हमारे मुख मंडल पर रहे,
बने इस भव्य जीवन के आचार्य।

अपनी सोच को संकुचित ना होने दें,
इस अपार समझ को कभी ना खोने दें,
असीम है सब कुछ इस ब्रह्मांड में,
हर स्वप्न को स्वयं के नेत्रों में संजोने दे।

About author 

Dr. Madhvi borse
डॉ. माध्वी बोरसे।
(स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)

Post a Comment

boltizindagi@gmail.com

If you can't commemt, try using Chrome instead.