भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार मुक्ति का अस्त्र - कर्तव्य परायणता सर्वोपरि

भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए 2047 का इंतजार क्यों? पद के प्रति कर्तव्यनिष्ठा सटीक मंत्र
हर पद पर आसीन बाबू से लेकर ऑफिसर तक अगर कर्तव्यनिष्ठा का सटीक मंत्र अपनाएं तो भ्रष्टाचार फ़टक भी नहीं सकता - एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया - भारत आदि अनादि काल से कर्तव्यनिष्ठा, कर्तव्य परायणता, कर्तव्य पालन में हदें पार करने की पराकाष्ठा काप्रतीक रहा है, जिसका उदाहरण हमें रामायण गीता सहित अनेकों धर्म ग्रंथों पुराणों में कर्तव्यनिष्ठा की गाथाएं पढ़ने को मिलती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी अनेक महानुभावों, महामानवों महापुरुषों में यह गुण समाहित होते गया जहां भ्रष्टाचार का स्तर चुटकी बराबर था। इसलिए हमारे बड़े बुजुर्गों द्वारा अपने बड़े बुजुर्गों की बातें बताते हुए उस अमृतकाल के सतयुग, स्वर्ण भारत, सोने की चिड़िया भारत के नाम से पुकारते हैं जहा घर को बिना ताला लगाए मनीषी जीव अनेक दिनों तक गांव चले जाते थे परंतु शायद समय को ऐसा मंजूर था कि अंग्रेजों की बुरी नजर सतयुग,स्वर्ण भारत और सोने की चिड़िया पर पड़ी और भ्रष्टाचार की चुटकी को पंख लगाने के बीज बोए गए जहां कहा जाता है कि भारतीय रियासत के राजाओं पर भ्रष्टाचार रूपी दीमक छोड़कर अंग्रेज़ व्यापारी बनकर आए और शासक बन बैठे। फ़िर समय ने करवट ली और क्रांतिकारी जागे, भारत को आजाद करवाया परंतु भ्रष्टाचार, दीमक की तरह विकास की बाधा बनता ही रहा जिसे समाप्त करने का समय आ गया है जिसके लिए अब भ्रष्टाचार की काट कर्तव्य परायणता कर्तव्यनिष्ठा सर्वोपरि का अभियान चलाना होगा हर पद पर बैठे बाबू से लेकर ऑफिसर तक को इस मंत्र से रूबरू कराना होगा।
साथियों शासन प्रशासन भ्रष्ट हो तो जनता की ऊर्जा भटक जाती है। देश की पूंजी का रिसाव हो जाता है। भ्रष्ट अधिकारी और नेता धन को स्विट्जरलैण्ड भेज देते हैं। इस कसौटी पर अमरीका आगे हैं। 'ट्रान्सपेरेन्सी इंटरनेशनल' द्वारा बनाई गयी रैंकिंग में अमरीका को १९वें स्थान पर रखा गया है जबकि चीन को ७९वें तथा भारत को ८४वां स्थान दिया गया है। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से भ्रष्टाचार को कर्तव्यनिष्ठा मंत्र से समाप्त करने की दिशा पर चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम भ्रष्टाचार मुक्त के अस्त्र कर्तव्यनिष्ठा कर्तव्य परायणता की करें तो, हर पद पर बैठे कर्मचारी के लिए वह पद उससे कर्तव्यनिष्ठा की अपेक्षा करता है वह पद उसे रोजी-रोटी प्रदान करता है इसलिए पद पर बैठे कर्मचारी के लिए भी अपने रोजी-रोटी अन्नदाता के लिए कर्तव्यनिष्ठा कर्तव्य परायणता की जवाबदारी बन जाती है जो चपरासी से लेकर आईएएस ऑफिसर तक और अधिकारी कांस्टेबल से लेकर हर सिविल सर्वेंट, डॉक्टर, वकील, सीए इंजीनियर सहित सभी बुद्धिजीवियों को यह अपने मस्तिष्क में बसा लेनी होगी तो फिर भ्रष्टाचार पास फ़टक भी नहीं सकता और पीएम की कही बात हमेशा याद रखें ना खाऊंगा ना खाने दूंगा, खाने वाला देने वाले को पकड़ाए और देने वाला खाने वाले को पकड़ाए फ़िर भ्रष्टाचार की क्या मजाल!!
साथियों बात अगर कर्तव्यनिष्ठा कर्तव्य परायणता को जानने की करें तो, कर्तव्य के पालन का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। प्राय: हमें कर्तव्य मार्ग पर दृढ़ रहने की शिक्षा अपने अग्रजों, शिक्षकों व मनीषियों से मिलती है, किंतु हम अपने कर्तव्यों को किस रूप में लेते हैं और किस हद तक अंजाम देते हैं, यह बात हम पर निर्भर करती है।कहीं ऐसा तो नहीं कि कर्तव्य पालन की परिभाषा बीतते वक्त के साथ दूषित हो गई हो और हम अपने कर्तव्यों को अहोभाव से न लेकर उन्हें भार स्वरूप ले रहे हों। कारण यह कि कर्तव्य अगर भार स्वरूप है तो निश्चित रूप से वह थकाने वाला होगा और उसमें हमारी श्रद्धा व आस्था का कोई स्थान नहीं होगा। वहीं अहो भाव से निभाया गया कर्तव्य आनंददायक व खेल की तरह स्फूर्तिदायक साबित होगा। कर्त्तव्यपरायणता-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहता है। वह बिना समाज के नहीं रह सकता। मनुष्य का जीवन-चक्र आज उसकी सामाजिकता का ही परिणाम है। जब मनुष्य किसी दूसरे के साथ रहता है तो दोनों को परस्पर एक-दूसरे की सुख-सुविधा का ध्यान रखना पड़ता है, तभी सामाजिक जीवन चल पाता है।
साथियों कर्तव्य पालन करना तो व्यक्ति बचपन में ही सीख जाता है और जो व्यक्ति नहीं सीख पाता, वह सदैव अपने कर्तव्यों से पीछे हटता रहता है और कभी भी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है। कर्तव्य पालन करने से व्यक्ति समाज में सम्मान पाता है क्योंकि कर्तव्य निष्ठा का पालन करते रहना ही मनुष्य के जीवन का एक अंग है। जब एक से अधिक व्यक्तियों में पारस्परिक व्यवहार रहेगा तभी समाज का निर्माण हो सकता है। परिवार समाज की इकाई है। इससे भी हम और आगे बढ़ें तब तहसील तथा पास-पड़ोस का क्षेत्र आता है और वहां की जनता में विभिन्न प्रकार का पारस्परिक सम्बन्ध चलता रहता है।इससे और आगे बढ़ा जाये तो जिला, प्रान्त और देश का सामाजिक जीवन है। इस सामाजिक-जीवन का सर्वाधिक व्यापक रूप विश्व-समाज है। इस प्रकार मनुष्य का जीवन क्षेत्र बढ़ता जाता है। जैसे-जैसे उसका क्षेत्र बढ़ता जाता है वैसे-वैसे उसके कर्त्तव्य और अधिकार भी बढ़ते चले जाते हैं। इन विभिन्न अवस्थाओं में पारस्परिक सम्बन्धों के समुचित निर्वाह को कर्तव्यपरायणता अथवा कर्तव्यपालन कहा जाता है-इस प्रकार मनुष्य के अनेक तथा विस्तृत कर्तव्य हैं और मनुष्य को उनके पालन का प्रयत्न करना पड़ता है।
साथियों बात अगर हम भारत में भ्रष्टाचार पर चर्चा की करें तो भारत में भ्रष्टाचार चर्चा और आन्दोलनों का एक प्रमुख विषय रहा है। स्वतंत्रता के एक दशक बाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और उस समय संसद में इस बात पर बहस भी होती थी। 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई, बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।
साथियों बात अगर हम भ्रष्टाचार को बढ़ाने की करें तो, भ्रष्टाचार बढ़ाने में दो पक्षों का हाथ होता है। एक जो कर्तव्यों के पालन के लिए अनुचित लाभ की मांग करता है, दूसरा वह पक्ष जो ऐसी मांगों पर बिना विचार और विरोध के लाभ पहुंचाने का काम करता है। प्रकृति ने भी दुनिया को ये संदेश दिया है कि प्रकृति और अन्य शक्तियों ने आपको जो जिम्मेदारियां कर्तव्य के रुप में दी हैं, उनको पूरा करने के लिए आप किसी भी तरह के अतिरिक्त लाभ के अधिकारी नहीं हैं। बिना लाभ की आशा के अपने कर्तव्यों की पूर्ति करना चाहिए। पद का उपयोग ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ कार्य करें निर्माण कार्यों में गडबडी या भ्रष्टाचार करने पर सख्त कार्यवाही करनी होंगी। ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों का प्रशासन संरक्षण करेगा वही भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों पर सख्त कार्यवाही बेहिचक करनी होगी। किसी पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारी के समर्थन में जनता सड़कों पर उतर आए, ऐसा कम ही देखने को मिलता है। ऐसा तभी होता है जब लोगों की राय में वह अधिकारी कर्तव्यनिष्ठ हो और जन-धारणा ऐसी बने कि उसका तबादला या उसके खिलाफ कोई अन्य कार्रवाई उसकी कर्तव्य परायणता के दंड के रूप में हुई है।
साथियों बात अगर हम भारतीय दंड संहिता में भ्रष्टाचार की सजा की करें, लोक सेवकों से संबंधित अपराधभारतीय संहिता के अध्याय-9, अध्याय 9 ए तथा अध्याय 10 के अंतर्गत लोक सेवकों से संबंधित अपराधों का वर्णन किया गया है। इन तीनों अध्याय में सभी अपराध लोक सेवकों से संबंधित हैं। कोई अपराध स्वयं लोक सेवक द्वारा किया जाता है तथा कोई अपराध लोकसेवक के प्राधिकार के विरुद्ध किया जाता है परंतु इसका मूल लोक सेवक ही है। दंड संहिता की धारा 161 से लेकर धारा 190 तक 30 धाराओं में लोक सेवक से संबंधित अपराधों का उल्लेख है। इन तीनों अध्यायों में तीनों विषयों को संकलित किया गया है।लोक सेवक का सामान्य अर्थ होता है कोई सरकारी अधिकारी ऐसा सरकारी अधिकारी जिसे किसी सरकारी कामकाज के लिए केंद्रीय या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया है तथा वह इसके बदले उस अधिकारी को परिश्रमिक का भुगतान करती है।लोक सेवक शासन के अधीन होते हैं समस्त कार्यपालिका कार्यों का संचालन एवं संपादन लोक सेवकों द्वारा किया जाता है। शासन की सफलता या असफलता लोक सेवक पर निर्भर करती है।लोक सेवक जितने ईमानदारकर्तव्यनिष्ठ होंगे शासन उतना ही साफ सुथरा होगा। लोक सेवक भ्रष्टाचार से दूर रहे और उसमें न्याय और कर्तव्यनिष्ठा की भावना बनी रहे, संहिता में कतिपय आवश्यक व्यवस्थाएं की गई हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भ्रष्टाचार मुक्ति का अस्त्र,कर्तव्य परायणता सर्वोपरि है।भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए 2047 का इंतजार क्यों?पद के प्रति कर्तव्यनिष्ठा सटीक मंत्र हैं।हर पद पर आसीन बाबूसे ऑफिसर तक अगर कर्तव्यनिष्ठा का सटीक मंत्र अपनाएं तो भ्रष्टाचार फ़टक भी नहीं सकता।

About author

Kishan sanmukh

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url