सावन की बौछार

 सावन की बौछार

सावन की बौछार यार
तन - मन को भिगाती है
मस्त फुहारें इस सावन की
याद किसी की दिलाती है

सावन के झूले अबतो
हर ओर निहारा करतें हैं
कोई तो आकर के झूले
रोज पुकारा करते हैं
पेड़ की डाली भी खुद से
अब ऊपर नीचे आती है
मस्त फुहारें इस सावन की
याद किसी की दिलाती है

कजरी वाले गीत गुम हुए
कोयल भी बेजुबान हुई
अबके सावन की बारिश भी
बस कुछ दिन की मेहमान हुई
आया करो प्रीत बरसाने
धरती सावन को सिखाती है
मस्त फुहारें इस सावन की
याद किसी की दिलाती है

त्यौहार नहीं त्यौहार के जैसे
अब सावन में लगते हैं
मौसम की है दोमुही मार
बस बादल रोज गरजते हैं
प्रकृति भी अब तो धरा पर
प्रीत को कम बरसाती है

About author

-सिद्धार्थ गोरखपुरी
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url