चांद की व्यथा

October 17, 2022 ・0 comments

चांद की व्यथा

गातें थे बहुत फसाने मेरी चांदनी के
पटाने अपने हुस्न की मल्लिका को
रात रात जग कर देख मुझे संदेश भेजा करते थे
अब आ गए बहुत यंत्र मंत्र संदेश भेजने के
नहीं पूछता मुझे कोई सिनेमा के गानों में
नहीं रहा अब महबूबा की तारीफों में
बस किया करतें हैं याद मुझे चौथ के दिनों में
उदास सा फिरता रहता हूं आसमां में
गिनता हूं तारें जो मेरे साथ घूमें आसमां में
करूं बिनती रब से बना दो हर दिन
क्यों नहीं बना देते चौथ को हर दिन
कल का दिन ही थी हैसियत मेरी बहुत
आज तो बस घूमूंगा वही रफ्तार में

About author

Jayshree birimi
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद (गुजरात)

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