खुद को खुद पढ़ जाती| khud ko khud padh pati

खुद को खुद पढ़ जाती

अपनी ही जिंदगी के किस्से मैं सुनाऊं किसको
कोई अपना नहीं मेरा , अपना कह सकूं जिसको।।

मेरा अपना , अपना होकर भी अपना ना हो सका
अपने टूटे सपनों के टुकड़े मैं अब दिखाऊं किसको।।

मेरी बिखरी अरमानों कि सेज देख दर्द होता है
फर्क नहीं पड़ता उसे सेज सजी मैं दिखाऊं जिसको।।

मेरी ख्वाहिशों को दिल में दबा कर मारा मैंने
मेरा अपना ही क़ातिल मेरी ख्वाहिशों का बताऊं किसको।।

आंखें आज भी उसकी ही यादों मैं मेरी आंसू बहाई
कोई तो हो जिसे दर्द ए स्याही के शब्द पढ़ाऊं जिसको।।

खुद को ही शब्दों में सजा खुद का दर्द पढ़ जाती हूं
जख़्मी दिल पर लिख मरहम़ लगाती
मैं ये दिखाऊं किसको।।

ये तंहाई जिंदगी की अंधेरों में मुझे ले जाती है
कोई तो हमदर्द हो मेरा भी , अपना कह सकूं जिसको।।2।।

About author 

Veena adwani

वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर , महाराष्ट्र

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