आल्हा/वीर छंद प्रेरणा गीत
आल्हा/वीर छंद
प्रेरणा गीत
बाधाओं से डर कर हे मन, तन को ढो मत जैसे भार।।कंटक राहों से बढ़कर ही,खुलते सदा सफ़लता द्वार।।
श्रम की चाबी कर में रखकर,आज सरल हर कर ले राह।
ईश्वर देंगे मनचाहा वर, कर ले मन में ऐसी चाह।।
सुख-दुःख जीवन के दो पहलू, बात यही तू अब स्वीकार।
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते यहाँ सफ़लता द्वार।।
तूफानों में डरना कैसा, नाव चला तू बनकर वीर।
रोके चाहे राहें कोई, तोड़ सदा दुख की प्राचीर।।
पाषाणों से टकराकर भी, बहती कल-कल नदिया धार।।
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते सदा सफ़लता द्वार।।
वीर कहाँ रण में झुकते हैं ,करते दुश्मन का प्रतिकार।
रुकते कब है बढ़ते वे पग, हर बाधा कर जाते पार।।
जीवन ज्वाला में तपकर ही, करती देह सदा श्रृंगार।।
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते यहाँ सफ़लता द्वार।।