Gazal-ye dhuwan sa ab kahan se uthata hai
गजल
ये धुआँ सा अब कहाँ से उठता है ।
लगता है गरीब के घर ही जलते हैं ।।
कुछ लोग तो रोटी को तरसते हैं यहाँ ।
देश में अब तो हराम ही यहाँ पलते हैं ।।
चोर-उचकौं की चारों तरफअब चाँदी है ।
भले लोग सहमे से यहाँ हरदम डरते हैं ।।
पानी के संकट का डर अब सबको है ।
फिर भी लोग गंगा माँ को दूषित करते हैं ।।
राज की खातिर ये विषधर विष घोलते हैं ।
अब तो नेता जी झूठ के सहारे ही चलते हैं ।।
देश में अब आपसी सद्भाव की जरुरत है ।
क्यों की अब अमन को भी खतरे लगते हैं।।
"नाचीज"अब मिल जुल सद्भाव कायम करो।
लगता है कुछ अब तो अनर्थ होते से लगते हैं ।।
लगता है गरीब के घर ही जलते हैं ।।
कुछ लोग तो रोटी को तरसते हैं यहाँ ।
देश में अब तो हराम ही यहाँ पलते हैं ।।
चोर-उचकौं की चारों तरफअब चाँदी है ।
भले लोग सहमे से यहाँ हरदम डरते हैं ।।
पानी के संकट का डर अब सबको है ।
फिर भी लोग गंगा माँ को दूषित करते हैं ।।
राज की खातिर ये विषधर विष घोलते हैं ।
अब तो नेता जी झूठ के सहारे ही चलते हैं ।।
देश में अब आपसी सद्भाव की जरुरत है ।
क्यों की अब अमन को भी खतरे लगते हैं।।
"नाचीज"अब मिल जुल सद्भाव कायम करो।
लगता है कुछ अब तो अनर्थ होते से लगते हैं ।।
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मोहल्ला कोहरियांन बीकानेर