क्या आत्महत्या ही एक मात्र रास्ता?

क्या आत्महत्या ही एक मात्र रास्ता? |Is suicide the only way?

क्या आत्महत्या ही एक मात्र रास्ता? |Is suicide the only way?
Is suicide the only way?
क्या आत्महत्या ही एक मात्र रास्ता है ? अपनी हर समस्या/परेशानी को खत्म करने का ? “आत्महत्या ” शब्द सुनना और देखना आजकल आम होते जा रहा है ,आत्महत्या अथार्त अपनी ही जिंदगी अपने हाथों खत्म कर देना ।आत्महत्या की घटनाएं आजकल बढ़ने लगी है आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? लोगों की मनोदशा इतनी इतनी खराब क्यों होते जा रही है ? वजह क्या है ?
मानसिक संतुलन बिगड़़ना ,लोगों का अपने आप उलझन में उलझे रहना ,अपने बातों को किसी से नहीं कहना अपनी परेशानियों को अपने तक रखना इत्यादि अक्सर अनेक वजह होते है जिसके वजह से लोग ऐसा करने पर मजबूर हो जाते है । आखिर क्यों करते हैं ? एक ही जिंदगी मिली है हमें उसे भी हम खुद के हाथों तबाह क्यों करते हैं ? और जब कोई इंसान ऐसा कर लेता है तब ऐसे कुछ लोग ऐसा करने की पीछे वजह क्या हो सकती हैं? कुछ लोग बहुत ही उत्सुक और भयभीत होकर वजह जानना चाहते हैं आखिर उस इंसान (जिसने आत्महत्या कर लिया) के साथ ऐसा क्या हुआ जो उसने ऐसा भयानक कदम उठा लिया अनेक प्रकार के सवाल जवाब करने लगते हैं और वजह मानों वजह जानकर उनका हल अभी के अभी निकाल देगा पर सवाल उठता है वजह हमे पता चल भी जाए तो क्या वह इंसान वापस ये दूनिया नहीं दे ख सकता और ना हमारे बीच आ सकता है ।
आज के दौर में लोगों के पास धैर्य ,सहनशक्ति, उदार, स्वभाव आदि कम और तनाव ,गुस्सा इत्यादि अधिक देखने को मिलते हैं और ऐसा हो भी क्यों नहीं आधुनिकता अपनाने के वजह से हम अपने परंपरा संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं सोशल मीडिया से अधिक लोग जुड़ रहे हैं सोशल मीडिया से जुड़ना गलत नहीं है पर इस्तेमाल सही तरीके से ना करना ही आज के दौर में एक इंसान के तनाव में जाने का एक वजह है जब सोशल मीडिया नहीं था लोग आमने-सामने मिलते जुलते रहते थे और कही न कही जिन्दगी के हर पहलू को आपस बातचीत के दौरान साझा करते थे, जिससे लोगों का मानसिक स्थिति स्वास्थ्य सब ठीक रहता था पर अब आमने सामने मिलते भी हैं तो सब अपने अपने फोन और सोशल मीडिया के दुनिया में व्यस्त रहते हैं, बस पास बैठे रहते हैं पर ध्यान कही और होता और इस वजह से अपने मन की बात व्यक्त कम करने लगे और वही इंसान जब कभी कोई परेशानी में होता है और किसी से कह नहीं पता तो खुद ही खुद उलझने और चितंत होने लगता है और इतना अधिक सोचने लगता है कि उसे सही गलत का फर्क भी भूल जाता है । इसी तरह से लोगों का शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ जाता है और अंदर का क्रोध बहुत भयावह रुप में प्रकट हो जाता है । अंतः एक खूबसूरत जिन्दगी से ऊब कर आत्महत्या कर लेता है पर ऐसा करने वाला खुद का परेशानी खत्म कर लेता है पर अपने परिवार और चाहने वाले को बहुत ही दुखमय स्थिति में छोड़ कर चला जाता है ।
इस परिस्थिति को जड़ से खत्म तो नहीं किया जा सकता है पर एक कोशिश से तनाव, परेशान इत्यादि समस्या को कम जरूर कर सकते हैं, उसके लिए संवाद का होना बेहद जरुरी है हमे जितना हो सके अपने जुड़े लोगों के साथ बातचीत करते रहना चाहिए और ऐसा नहीं है कि सिर्फ हाल चाल पूछ लिया जाए कभी उनके अंदर की मनोदशा के बारे में जाने की भी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि आजकल इंसान अपने परेशानी बताने में हिचकिचाते है क्योंकि उनके अंदर समाज के चार लोगों का डर बना रहता कि आपका समस्या सुनकर कम करने के बजाय अधिक ना कर दे और इसी तरह सभी लोग चार लोग क्या कहेंगे, समाज इत्यादि के बारे में सोच -सोच अपने आप के बारे में सोचना भूल जाते हैं कि आखिर उन्हें अपने अनमोल जिन्दगी में क्या करने से खुशी मिलेगी हा कुछ लोग ऐसे भी है जो बेफिक्र दुनियादारी के डर से अपने लिए हर वह काम करते जिनसे उन्हें खुशी मिलती है और वही असल मायने में खुश है और दुसरों को खुशी बांट रहे । मेरा मानना यही है कि कुछ भी हो इस अनमोल जीवन खत्म करने से अच्छा है कि आप वो करो जो करके आपको अच्छा लगे क्योंकि इस आधुनिकता के दौर में सभी उलझे हुए है पर इतना भी न उलझो की अपने करीबी इंसान को ही खो दो, जितना हो सके एक- दूसरे के बातों को सुना और समझने की कोशिश करे क्योंकि ये जिन्दगी दुबारा नहीं मिलने वाला ।

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Mamta Kushwaha
ममता कुशवाहा
स्वरचित रचना
मुजफ्फरपुर, बिहार
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