व्यंग्य कविता-किसी को बताना मत|kisi ko batana mat
November 13, 2022 ・0 comments ・Topic: kishan bhavnani poem
व्यंग्य कविता-किसी को बताना मत
बड़े बुजुर्गों की कहावत सच है कि
हाथी के दांत दिखाने खाने के और हैं
मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं
किसी को बताना मत
बड़े बुजुर्गों की कहावत है कि एक उंगली
दूसरे पर उठा तीन उंगली ख़ुदपर उठेगी
मैं भी दूसरों पर उंगली उठाता हूं पर तीन
उंगलियां का मैं दोषी हूं किसी को बताना मत
अपने संस्था के प्रोग्राम में मुख्य अतिथि
एसपी की पत्नी जज़अधिकारी को बुलाता हूं
उनमें मेरे कई बहुत काम फ़सते हैं
किसी को बताना मत
मैं खुद प्राकृतिक संसाधनों का अवैध
दोहन कर शासन को चुना लगाता हूं
अधिकारियों के हाथ गर्म करता हूं
किसी को बताना मत
हर गलत काम जो अवैध करता हूं
समाज में सफेदपोश बनकर रहता हूं
नामी संस्था का संस्थापक हूं
किसी को बताना मत
यह सब बातें तुम अपने हो शेयर करता हूं
भ्रष्टाचार को पूरी हवा देता हूं
प्रदूषण फैलाने का काम करता हूं
किसी को बताना मत -3
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