आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस | Zero tolerance on terrorism

आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस

आतंकवाद को समाप्त करने उन्हें राजनैतिक विचारधारात्मक और वित्तीय सहायता देना बंद करना जरूरी
वैश्विक स्तर पर आतंकवाद का वित्त पोषण करने वाली जड़ पर प्रहार करने के रणनीतिक रोड में पर सहभागिता ज़रूरी - एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर आतंकवाद पूरी मानव जाति को प्रभावित कर रहा है, क्योंकि आतंकवाद का कोई जाति धर्म मज़हब नहीं होता है इसलिए इसका मुकाबला करने सारी दुनिया को एक मंच पर लिए गए निर्णय को मिलकर क्रियान्वयन करना ज़रूरी है, क्योंकि यह समस्या किसी एक आतंकी की नहीं है कि उससे निपट लिया जाए यह आतंकवाद है, इसकी जड़ें अनेकों देशों तक फैली हुई है जो छोटे देशों ही नहीं परंतु बड़े बड़े विकसित देशों तक फैली हुई है। अमेरिका का 9/11 भारत का मुंबई बम धमाका, संसद अटैक, ताजमहल होटल अटैक से लेकर अनेकों वारदातों के अंजाम भुगतकर आज भी हम आतंकवाद से पीड़ित हैं इसीलिए इसे समाप्त करने के लिए सबसे पहले इनकी जड़ें काटना जरूरी है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जड़ों में से एक वित्तपोषण है जिसे समाप्त करने के लिए मंत्री स्तरीय वैश्विक सम्मेलन 18-19 नवंबर 2022 को दिल्ली में हुआ है जिसके स्तर का बड़ा सम्मेलन अब जी-20 एफएटीएफ एआईआईबी यूएन ईयू एसएएआरसी यूनेस्को आईएमएफ सहित अनेक वैश्विक मंचों पर मुख्य विषयों में से एक आतंकवाद को भी एजेंडे में सम्मिलित कर इसे जड़ से मिटाना होगा और राजनीतिक विचारधारात्मक और वित्तीय सहायता देना बंद करने पर वैश्विक प्रतिबंधों का संज्ञान लेने सारी दुनिया का सहभागिता से एक मंच पर आना होगा। चूंकि 18-19 नवंबर 2022 को नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन हुआ है, जिसको माननीय भारतीय पीएम सहित अनेकों ने संबोधन किया है इसलिए आज हम पीआईबी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस।
 
साथियों बात अगर हम नो मनी फॉर टेरर वैश्विक सम्मेलन 18 नवंबर 2022 में माननीय पीएम के संबोधन की करें तो उन्होंने कहा सब अच्छी तरह से जानते हैं कि आतंकी संगठनों को अनेक स्रोतों से धन मिलता है। एक स्रोत तो कुछ देशों से मिलने वाला समर्थन है। कुछ देश अपनी विदेश नीति के हिस्से के रूप में आतंकवाद का समर्थन करते हैं। वे उन्हें राजनीतिक, विचारधारात्मक और वित्तीय सहायता देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संगठन यह न समझें कि नियमित युद्ध न होने का मतलब शांति है। छद्म युद्ध भी खतरनाक और हिंसक होते हैं। आंतकवाद का समर्थन करने वाले देशों को दंडित किया जाना चाहिये। ऐसे संगठन और व्यक्ति, जो आतंकियों के लिये हमदर्दी पैदा करने की कोशिश करते हैं,उन्हें भी अलग थलग करना होगा। ऐसे मामलों के लिये कोई किन्तु-परन्तु नहीं हो सकता। आतंकवाद के सभी गुप्त और प्रकट समर्थनों के विरुद्ध विश्व को एक होने कीआवश्यकता है।आतंकी से लड़ना और आतंकवाद से लड़ना,ये दो अलग-अलग चीजें हैं। आतंकी को तो हथियार के बल पर निष्क्रिय किया जा सकता है।
सुनियोजित कार्रवाई के जरिये आतंकी के खिलाफ फौरन कदम उठाना एक अभियान-प्रक्रिया होती है। आतंकी एक व्यक्ति होता है। लेकिन आतंकवाद व्यक्तियों और संगठनों का नेटवर्क होता है। आतंकवाद के समूल नाश के लिए बड़ी और सक्रिय कार्रवाई की जरूरत होती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे नागरिक सुरक्षित रहें, तब हम आतंक का अपनी चौखट तक पहुंचने का इंतजार नहीं कर सकते। हमें आंतकियों का पीछा करना है, उनका समर्थन करने वाले नेटवर्क को तोड़ना है और उनके धन के स्रोतों पर चोट करना है।आतंकवाद की आर्थिक मदद का एक स्रोत संगठित अपराध है। संगठित अपराध को भिन्न रूप में नहीं देखना चाहिये। इन गिरोहों के सम्बन्ध प्रायः आतंकी संगठनों से होते हैं। हथियारों, नशीले पदार्थों और तस्करी से मिलने वाला धन आतंकवाद में लगा दिया जाता है। ये गिरोह लॉजिस्टिक्स और संचार के मामले में भी मदद करते हैं।
 
आतंक के विरुद्ध लड़ाई के लिये संगठित अपराध के खिलाफ कार्रवाई अत्यंत जरूरी है। देखा गया है कि कभी-कभी धन शोधन और वित्तीय अपराध जैसी गतिविधियां भी आतंकवाद को धन मुहैया कराती हैं। इस लड़ाई के लिए पूरे विश्व का सहयोग चाहिये। ऐसे जटिल माहौल में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, वित्तीय कार्रवाई कार्यदल, वित्तीय आसूचना इकाइयां और एग्मॉन्ट ग्रुप अवैधानिक धन प्रसार को रोकने, पता लगाने और कानूनी कार्रवाई करने के क्रम में सहयोग बढ़ा रहे हैं।
आज की दुनिया में अगर देखें, तो दुनिया को आतंकवाद के खतरों की याद दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। बहरहाल, कुछ क्षेत्रों में आतंकवाद के बारे में गलत धारणायें अब भी मौजूद हैं। यह आवश्यक नहीं है कि अलग-अलग स्थान पर होने वाले हमलों के विरुद्ध प्रतिक्रिया की तीव्रता भी अलग-अलग हो। सभी आतंकी हमलों के विरुद्ध एक सा गुस्सा और एक सी कार्रवाई जरूरी है। इसके अलावा, कभी-कभी आंतकियों के खिलाफ कार्रवाई रोकने के लिए आंतकवाद के समर्थन में अप्रत्यक्ष रूप से तर्क भी दिए जाते हैं। इस वैश्विक खतरे का मुकाबला करने के लिए टाल-मटोल वाले रवैये की कोई जगह नहीं है। यह मानवता पर, आजादी और सभ्यता पर हमला है। यह सीमाओं में नहीं बंधा है। केवल समेकित, एकबद्ध और आतंकवाद को कदापि सहन न करने की भावना के बल पर ही आतंकवाद को परास्त किया जा सकता है।
अब,आतंकवाद का ताना-बाना बदल रहा है। तेजी से विकसित होती प्रौद्योगिकी चुनौती भी है और समाधान भी। आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने और आतंकियों की भर्ती के लिए नये तरह की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हो रहा है। डार्क-नेट, निजी तौर पर जारी की जाने वाली मुद्रा और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों की चुनौतियां मौजूद हैं। नई वित्त प्रौद्योगिकियों की साझा समझ की आवश्यकता है। यह भी जरूरी है कि इन प्रयासों में निजी सेक्टर को भी शामिल किया जाये। साझी समझ से लेकर, रोकथाम की समेकित प्रणाली, संतुलन और नियमन को भी आगे लाया जा सकता है। लेकिन हमें हमेशा एक चीज से सावधान रहना होगा। इसका जवाब प्रौद्योगिकी को दोष देना नहीं है। इसके बजाय आंतकवाद को ट्रैक, ट्रेस और टैकल करने के लिए प्रौद्योगिकी को इस्तेमाल करना चाहिये। कई विभिन्न देशों में उनके अपने कानूनी सिद्धांत, प्रक्रियाएं और तौर-तरीके हैं। सम्प्रभु राष्ट्रों के पास अपनी प्रणालियों के तहत काम करने का अधिकार है। बहरहाल, हमें इस बात के लिए सावधान रहना होगा कि विभिन्न प्रणालियों का दुरुपयोग करने की छूट आतंकियों को न मिलने पाये। इसे सरकारों के बीच गहरे सहयोग और समझ के जरिये रोका जा सकता है। संयुक्त अभियान, खुफिया समन्वय और प्रत्यर्पण से आतंक के खिलाफ लड़ने में मदद मिलेगी। जो भी कट्टरपंथ का समर्थन करता है, उसे किसी भी देश में पनाह नहीं मिलनी चाहिए।
यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण सम्मेलन है, इसे केवल मंत्रियों के सम्मेलन के रूप में नहीं देखना चाहिए,क्योंकि इसमें ऐसे विषय पर विचार होना है जो पूरी मानवजाति को प्रभावित करता है। आतंकवाद का दीर्घकालीन दुष्प्रभाव खासतौर से गरीबों और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बहुत भारी होता है। चाहे वह पर्यटन हो या व्यापार, कोई भी व्यक्ति उस क्षेत्र में जाना नहीं चाहता, जहां निरंतर खतरा हो और इसी के कारण, लोगों की आजीविका छिन जाती है। यह बहुत जरूरी है कि हम आतंकवाद का वित्तपोषण करने वाली जड़ पर प्रहार करें। कई विभिन्न देशों में उनके अपने कानूनी सिद्धांत, प्रक्रियाएं और तौर-तरीके हैं। सम्प्रभु राष्ट्रों के पास अपनी प्रणालियों के तहत काम करने का अधिकार है। बहरहाल, हमें इस बात के लिए सावधान रहना होगा कि विभिन्न प्रणालियों का दुरुपयोग करने की छूट आतंकियों को न मिलने पाये। इसे सरकारों के बीच गहरे सहयोग और समझ के जरिये रोका जा सकता है। संयुक्त अभियान, खुफिया समन्वय और प्रत्यर्पण से आतंक के खिलाफ लड़ने में मदद मिलेगी। जो भी कट्टरपंथ का समर्थन करता है, उसे किसी भी देश में पनाह नहीं मिलनी चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस। आतंकवाद को समाप्त करने उन्हें राजनीतिक विचारधारात्मक और वित्तीय सहायता देना बंद करना जरूरी है। वैश्विक स्तरपर आतंकवाद का वित्त पोषण करने वाली जड़ पर प्रहार करने के रणनीतिक रोडमैप पर सहभागिता जरूरी है।


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Kishan sanmukh

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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