भारत माँ की पीर| bharat ma ki peer

भारत माँ की पीर

भारत के गणतंत्र की,
ये कैसी है शान ।
भूखे को रोटी नहीं,
बेघर को पहचान ।।

सब धर्मों के मान की,
बात लगे इतिहास ।
एक-दूजे को काटते,
ये कैसा परिहास ।।

प्रजातंत्र का तंत्र अब,
लिए खून का रंग ।
धरम-जात के नाम पर,
छिड़ती देखो जंग ।।

पहले जैसे कहाँ रहे,
संविधान के मीत।
न्यारा-न्यारा गा रहा,
हर कोई अब गीत ।।

विश्व पटल पे था कभी
भारत का सम्मान ।
लोभी नेता देश के,
लूट रहे वो मान ।।

रग-रग में पानी हुआ,
सोये सारे वीर ।
कौन हरे अब देश में
भारत माँ की पीर ।।

मुरझाये से अब लगे ,
उत्थानो के फूल ।
बिखरे है हर राह में,
बस शूल ही शूल।।

आये दिन ही बढ़ रहा,
देखो भ्रष्टाचार ।
वैद्य ही जब लूटते,
करे कौन उपचार ।।

कैसे जागे चेतना,
कैसे हो उद्घोष ।
कर्णधार ही देश के,
लेटे हो बेहोश ।।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह 'दीमक लगे गुलाब' से।

About author 

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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