व्यंग कविता –बातों में शेर हूं पर काम में ढेर हूं

 व्यंग कविता –बातों में शेर हूं पर काम में ढेर हूं

व्यंग कविता –बातों में शेर हूं पर काम में ढेर हूं
सीज़न में जनता से बड़ी-बड़ी बातें करता हूं 
गंभीर कठिन वादे ठस्के से करता हूं 
समय आने पर परिस्थितियों पर दोष मढ़ता हूं 
बातूनी शेर हूं पर काम में ढेर हूं 

दूसरों की सफ़लता देख अपमानित महसूस होता हूं 
अपना दोष दूसरों पर मढ़ देता हूं 
भ्रष्टाचार का विरोध कर मैं खुद वह करता हूं 
बातूनी शेर हूं पर काम में ढेर हूं 

अधीनस्थों को भ्रष्टाचार के लिए उकसाता हूं 
बात बिगड़ने पर दोष उनके सर मढ़ता हूं 
अपने पेशे में बहुत बड़ा होशियार हूं 
बातूनी शेर पर काम में ढेर हूं 

ख़ुद को होशियारी से पाकसाफ़ बताता हूं 
अपना इल्ज़ाम दूसरों पर मढ़ देता हूं 
मेरे खिलाफ़ साजिश है ठस्के के से बोल देता हूं 
बातूनी शेर हूं पर काम में ढेर हूं 

बयान को निजी राय कोर्ट की बात सुना हूं 
पार्टी भी हाथ खड़ा कर देगी जानता हूं 
प्रोफेशन बड़ी-बड़ी बातें करने का है परेशान हूं 
बातूनी शेर हूं पर काम में ढेर हूं  

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url