अपाहिज | laghukatha -apaahij

अपाहिज !!

अपाहिज | laghukatha -apaahij
अपाहिज | laghukatha -apaahij

डॉ विनीता एक गांव में लगने वाली विकलांग शिविर के लिए घर से निकली थी। वह हड़बड़ी में बस स्टॉप के तरफ़ भागी जा रही थी। तभी एक पैर से विकलांग नौजवान सामने आ खड़ा हुआ।

" मैडम! मैडम….। "

वह कुछ आगे बोलता उसके पहले ही विनीता गुस्से में तिलमिलाती उठी, " तुम सबकी यही सबसे बड़ी विडंबना हैं। स्त्री देखें नहीं की बहाने ढूंढ़कर टकरा गए। ना जाने कौन सा सुख मिल जाता है तुम सब को।"

" अरे मैम!देखकर तो चलिए। आगे नो एंट्री की बोर्ड लगी हैं!" एक प्लास्टिक स्माइल देते हुए वह नौजवान आगे बढ गया।

विनीता को अपाहिज का यूँ मुस्कुराना जरा भी अच्छा नहीं लगा। बस में बैठते ही सोचने लगी, ' काश! अपनी गाड़ी से आई रहती तो मूड खराब नहीं होता। सुबह- सुबह ना जाने किस अपाहिज से मुलाकात हो गई।'

"टिकट! मैडम टिकट!"
आवाज़ सुनते ही डॉ विनीता की तंद्रा भंग हो गई।
जैसे ही नज़र ऊपर की फिर से वही अपाहिज सामने खड़ा था।

" मैडम जरा जल्दी कीजिए! मुझे आपको आपके मंज़िल तक पहुँचाने हैं! हमारा कंडक्टर आज डबल दिहाड़ी पर कहीं और कमाने गया हैं,उसको अपने पत्नी को डॉ बनाना हैं।और मुझे उसके पत्नी को उसके मंज़िल तक पहुँचाने में मदद करनी हैं।"

डॉ विनीता सन्न थी। सोच में डूब गई, " अपाहिज कौन मैं या ये कंडक्टर ?

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Priyanka vallari
रानी प्रियंका वल्लरी
बहादुरगढ हरियाणा
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