कविता एकत्व | kavita ekatatva

  एकत्व 

कविता एकत्व | kavita ekatatva
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।
मैं भी हूं एकाकी तू भी है एकाकी,
जीवन पथ पर है चलना हम सबको एकाकी,
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।

ना कोई तेरा है ना है किसी का तू ,
मोह के रिश्ते हैं माया का है जादू ,
मोह- माया के फेरे में जीवत्व है एकाकी,
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।

आया तू अकेला था जाएगा भी अकेला ही,
रह जाएगा सारा मेला भी झमेला भी,
आने जाने के क्रम में होना है एकाकी,
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।

संसार के मेले में भ्रमों का रेला है,
बहने की है नियती जड़ को तो बहना है,
स्मरण मग़र रख ले चेतन ये एकाकी,
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।

ये तन है क्षणभंगुर पल में मिट जाएगा,
माटी का ये ढेला माटी में ही मिल जाएगा,
तन के इस सुख दुःख में खुद को रख एकाकी,
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।

लाया ना संग कुछ भी जाना भी है खाली हाथ,
कर्मों का इक लेखा होगा बस तेरे साथ,
द्वार पर परमात्मा के हर आत्मा एकाकी,
एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी ।

एकाकी, एकाकी, जीवन है एकाकी,
मैं भी हूं एकाकी तू भी है एकाकी ।

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Veerendra Jain, Nagpur
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