सब्र। सब्र पर कविता| kavita -sabra

 सब्र।

जब आंखें नम हो जाती है,
जब आत्मा सहम जाती है,
उम्मीद जिंदा नहीं रहती,
जिंदगी गम से भर जाती है।

जब दिल टूट जाता है,
आशियाना बिखर जाता है,
कहना बहुत कुछ चाहते हुए भी,
दर्दे दिल कह नहीं पाता है।

एक एक पल एक दिन सा लगता है,
अकेले में मन सिसकता है,
सपने बिखर जाते हैं,
फिर भी सीने में दिल धड़कता है।

जो होता है बस सहते हैं,
अश्रु अकेले में बहते हैं,
फिर भी मुस्कुराहट और उम्मीद में जीना,
सब्र इसे ही कहते हैं।।

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डॉ. माध्वी बोरसे! ( स्वरचित व मौलिक रचना) राजस्थान (रावतभाटा)

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( स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)

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