लघुकथा:मेरा नाम क्या है| laghukatha -mera nam kya hai

लघुकथा : मेरा नाम क्या है| laghukatha -mera nam kya hai

लघुकथा:मेरा नाम क्या है| laghukatha -mera nam kya hai
इक्यान्नवे साल की उम्र में अचानक आई इस व्याधि से वह आकुल-व्याकुल हो उठे। तकलीफ विचित्र थी। सुबह उठने के साथ ही उन्हें अपना नाम ही नहीं याद आ रहा था। लगभग दो घंटे तक वह कमरे में इधर से उधर चक्कर लगाते रहे। मर चुकी पत्नी भी 'कहती हूं' कह कर ही बुलाती थी, इसलिए उसने भी कोई नाम दिया हो, याद नहीं आ रहा था। स्वर्गस्थ पत्नी के फोटो के नीचे उसके नाम के पीछे उनका नाम था। परंतु पिछले साल फोटो के पीछे चले गए बरसात की पानी की वजह से उस जगह इस तरह के दाग पड़ गए थे कि नाम पढ़ने में ही नहीं आ रहा था। जबकि पढ़ने में भी आ रहा होता तो अनपढ़ आंखें पढ़ ही कहां पातीं। गांव के अपने घर में होते तो किसी से पूछ लेते। पर इस समय तो वह बेटे के घर शहर में थे। यहां तो ज्यादा लोग उन्हें पहचानते भी नहीं थे।
विदेश कमाने गए बेटे के उसकी कर्कश बहू थी। अगर उससे पूछ लेते तो वह इस तरह बात का बतंगड़ बनाएगी कि सोच कर ही उन्हें चक्कर आ गया। बेटे को विदेश फोन लगाया और जैसे ही पूछा कि मेरा नाम क्या है? वहां तो जब चाहे फोन लगा कर पूछने के बदले जो सुनने को मिला कि... पर नाम का पता नहीं चला। खूब सोच-विचार कर छोटे पोते को पास बुला कर पूछा, "बाबू, तुम्हें मेरा नाम पता है?"
उसने हां में सिर हिलाया। पर नाम बोलने के लिए चाकलेट की खातिर दस रुपए मांगे। दस की नोट पकड़ा कर अपना नाम पूछा तो जवाब मिला, "दादाजी।"
"अरे यह नहीं, मेरा नाम बोलो।"
"हां, वही तो कह रहा हूं। आप का नाम दादाजी है। मैं तो यही तो कह कर बुलाता हूं।" कह कर पोता भाग गया।
इसी चिंता में वह घर के बाहर निकले तो सामने मिठाई की दुकान वाले ने 'नमस्कार' किया। बड़ी उम्मीद के साथ वह दुकान पर पहुंचे और सकुचाते हुए पूछा, "भाई, तुम्हें मेरा नाम मालूम है?"
जवाब में दुकानदार ने जोर से हंस कर कहा, "आप भी न, सालों से आप को चाचा कहता आ रहा हूं तो आप का नाम जान कर क्या करना है।"
गांव से बचपन के दोस्त का फोन आया। फोन रिसीव होते ही उसने पूछा, "पप्पू मजे में है न?"
उन्हें खुशी हुई, लगा कि उनका नाम पप्पू है। कन्फर्म करने के लिए पूछा तो दोस्त ने कहा, "उम्र की वजह से ठीक से याद नहीं। पर पप्पू तेरी कसम, नाम तो तेरा कोई दूसरा है, पर मैं तो बचपन से तुझे पप्पू ही कहता आ रहा हूं।"
दोस्त की इस बात से वह और चिढ़ गए। मैं भी कैसा आदमी हूं कि अपना नाम भी याद नहीं है। इसकी अपेक्षा तो मर जाना ठीक है। बड़ी मेहनत से वह छत पर गए। वह छलांग लगाने जा रहे थे कि उनके फोन की घंटी बजी। फोन उठाते ही दूसरी ओर से कहा गया, "रामप्रसादजी, आप को लोन चाहिए?"
यह सुन कर रामप्रसाद मुसकरा उठे।

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वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336
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