सिखाया जिंदगी ने बिन किताब
सिखाया जिंदगी ने बिन किताब
खुद से अधिक किसी ओर को चाहनाहोता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
खुद को हर पल नज़र अंदाज़ कर जाना
दूजों के आगे हर पल बेगुनाह
होकर भी झुक जाना।।
होता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
खुद कि तमन्नाओं का गला
हर वक्त घोंट जाना
दूजे के लिए खुद को ही
बदल जाना।।
होता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
दर्द ए खामोशी को भीतर ही
दबाते चले जाना
दूजों कि दहाड़ों को सुन बस
डर दुबक जाना।।
होता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
पापी है जानते हुए भी पाप के
लिए मुंह ना खोल पाना
पापी के पाप में होता भागीरथी
ये भी था समझाना।।
होता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
जिंदगी सिखाए इतना अधिक
कलम तुझे ये तराना
तेरी पहचान हैं हसीं इसे देख
भी ना खुश हो जाना।।
होता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
वक्त आएगा तेरा दिल को ये
कह बस तसल्ली दिलाना
जितनी चोट दी , दुगनी उसे एक
दिन जरूर मिलेगी ये सोच जाना।।
होता है खुद कि नज़र मे खुद
के ही गुनहगार कहलाना।।
About author
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र