वैश्विक चिंतनीय अर्थव्यवस्था बनाम भारतीय सुदृढ़ अर्थव्यवस्था
वैश्विक चिंतनीय अर्थव्यवस्था बनाम भारतीय सुदृढ़ अर्थव्यवस्था
वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफ़एसडीसी) की 27 वीं बैठक में वित्तीय प्रणाली के सुरक्षित रेगुलेटेड पर मुहरविकसित देशों की चिंतनीय अर्थव्यवस्था के बीच भारत की वित्तीय व्यवस्था सुरक्षित, मज़बूत और नियमन के दायरे में सराहनीय उपलब्धि है - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - वैश्विक स्तरपर दुनिया के विकसित बलवंत और लीडर देशों की अर्थव्यवस्था के हाल वर्तमान वर्षों में कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं? जैस कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित टीवी चैनलों पर अनेक देशों में महंगाई, हर व्यक्ति पर इतने लाख रुपए का कर्ज और जीडीपी की तुलना में कर्ज सबसे अधिक है, जैसे एक लीडर विकसित देश का जीडीपी 21.44 ट्रिलियन डॉलर का था, परंतु उस पर कर्ज 27 ट्रिलियन डॉलर का था उसी तरह एक दूसरे विकसित देश जिसने भारत पर सैकड़ों वर्ष राज किया था, वहां महंगाई का हाल पिछले 40 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ रहा है ठीक उसी तरह हमारे पड़ोसी मुल्कों की तो बात बताना या लिखना उचित नहीं है। परंतु जिस तरह भारत ने बजट 2023 में विकास योजनाओं और विज़न 2047 को पटरी बनाकर योजनाओं रूपी गाड़ी को दौड़ाया जा रहा है बजट एलोकेशन क्रियान्वयन किए जा रहे हैं, वह रेखांकित करने योग्य है। अभी दो दिन पूर्व ही माननीय केंद्रीय मंत्री ने भारत में मंदी की ज़ीरो संभावना व्यक्त की थी जो इसके पूर्व एक रेटिंग एजेंसी ने भी भारत का वैश्विक मंदी में जीरो रैंकिंग किया है, जिसकी चर्चा हम पिछले आर्टिकल में कर चुके हैं। चूंकि दिनांक 8 मई 2023 को देश में वित्तीय स्थिति और विकास परिषद (एफएसडीसी) की 27 वीं बैठक वित्तमंत्री की अध्यक्षता में संपन्न हुई और वित्तीय प्रणाली के सुरक्षित मज़बूत और रेगुलेटेड पर मोहर लगाई गई,इसीलिए मीडिया में उपलब्ध जानकारी टीवी चैनलों पर बताई जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से हम चर्चा करेंगे, वैश्विक चिंतनीय अर्थव्यस्था बनाम भारतीय सुदृढ अर्थव्यवस्था।
साथियों बात अगर हम दिनांक 8 मई 2023 को देर शाम संपन्न हुई 27 वीं एफएसडीसी बैठक की करें तो आर्थिक मामलों के सचिव नें कहा कि चुनौतीपूर्ण वैश्विक वित्तीय स्थिति के बावजूद देश की वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह से सुरक्षित, मजबूत और नियमन के दायरे में है।(एफएसडीसी) बैठक के नतीजोंके बारे मेंसंवाददाताओं को जानकारी देते हुए टीवी चैनल पर कहते दिखाया,देश की वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह से सुरक्षित, मजबूत और नियमन के दायरे में है। लेकिन जैसे ही शुरुआती चेतावनी के संकेत दिखाई दें, हमें उसके लिये सतर्क रहने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि कुछ संकेतक हैं,जो शुरुआती चेतावनी देते हैं ताकि समय पर दबाव को बेहतर तरीके से देखा और समझा जा सके तथा उसे दूर करने के लिये तुरंतसुधारात्मक उपाय किये जाएं।यह पूछे जाने पर कि क्या सिलिकॉन वैली बैंक औरसिग्नेचर बैंक के विफल होने तथा क्रेडिट सुइस में नकदी दबाव के देश की वित्तीय प्रणाली पर प्रभाव को लेकर बैठक में चर्चा हुई, उन्होंने कहा कि यह मुद्दा स्पष्ट तौर पर नहीं आया, लेकिन वैश्विक वित्तीय संकट का असर नहीं है। सरकारी प्रतिभूति बाजार के बारे में उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ इसे सहज और सुलभ बनाने का प्रयास है। निवेशक चाहे रिजर्व बैंक के बुनियादी ढांचे के माध्यम से आते हैं या फिर सेबी के बुनियादी ढांचे के मार्ग से, आज प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ यह संभव है। जबकि पहले यह संभव नहीं था।उन्होंने यह भी कहा कि परिषद ने अर्थव्यवस्था के लिए शुरुआती चेतावनी संकेतकों और उनसे निपटने को लेकर हमारी तैयारियों पर भी विचार विमर्श किया। इसके अलावा, नियामकीय गुणवत्ता में सुधार कर वित्तीय क्षेत्र में विनियमित संस्थाओं पर अनुपालन बोझ को कम करने,देश में कंपनियों और परिवारों के मामले में ऋण स्तर, डिजिटल इंडिया की जरूरतों को पूरा करने के लिये केवाईसी (अपने ग्राहक को जानों) को सरल और सुव्यवस्थित करने पर भी चर्चा की गयी।इसके अलावा, सरकारी प्रतिभूतियों को लेकर खुदरा निवेशकों के लिये चीजों को सुगम बनाना, बीमाकृत भारत यानी देश में बीमा को अंतिम छोर तक पहुंचाने समेत अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई।परिषद ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में एफएसडीसी उप-समिति के कार्यों तथा परिषद के पूर्व फैसलों के क्रियान्वयन पर भी गौर किया गया।
साथियों बात अगर हम विश्व लीडर माने जाने वाले एक विकसित देश की अर्थव्यवस्था की करें तो कहा जा रहा है कि वहां के वित्तमंत्री ने चेतावनी दी है कि कर्ज की सीमा नहीं बढ़ी, तो बिल नहीं भर पाएंगे, सरकार 1 जून तक डिफाल्टर हो सकती है इसका मतलब यह है कि सरकार ने अपने खर्चा करने की सीमा को पार कर लिया है, अब उनके पास बिल का भुगतान और कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं बचे हैं और इसलिए ट्रेजरी सेक्रेटरी ने कहा है 1 जून 2023 तक सरकार को देश चलाने के लिए पैसे खत्म हो जाएंगे सरकार कैशलेस हो जाएगी।
साथियों बात अगर हम 5 मई 2023 को वहां के राष्ट्रपति के बयान की करें तो उन्होंने कहा कि वह अभी तक 14 वें संशोधन को लागू करने के लिए तैयार नहीं थे ताकि संयुक्त राज्य अमेरिका 1 जून की शुरुआत में अपने ऋणों में चूक से बच सके, पहली बार टिप्पणी की गई कि उन्होंने विकल्प को खारिज नहीं किया है। संशोधन को लागू करने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर एमएसएनबीसी के साथ एक साक्षात्कार में कहा,मैं अभी तक वहां नहीं पहुंचा हूं। विभाजित अमेरिकी कांग्रेस के पास संघीय सरकार की 31.4 ट्रिलियन डॉलर ऋण सीमा को बढ़ाने के लिए समय समाप्त हो रहा है, ट्रेजरी विभाग ने चेतावनी दी है कि वह 1 जून तक अपने बिलों का भुगतान करने में असमर्थ हो सकती है। यदि कांग्रेस कार्य करने में विफल रहती है, तो कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रपति के पास संकट को टालने का एक और विकल्प है, संयुक्त राज्य अमेरिका अपने बिलों का भुगतान करना जारी रख सकता है, यह सुनिश्चित करने के लिए अमेरिकी संविधान में 14वें संशोधन को लागू करें। राष्ट्रपति नें एजेंडा में 14 प्रतिशत की कटौती चाहते हैं। रिपब्लिकन अप्रैल में रिपब्लिकन पार्टी ने एक बिल पास किया था जिसमें ये प्रस्ताव रखा गया था कि अगर बाइडेन अपने हेल्थ, क्लाइमेट चेंज और सोशल प्रोग्राम जैसी योजनाओं में 14 प्रतिशत की कटौती करने को तैयार हैं तो वो कर्ज की सीमा को बढ़ा देंगे। हालांकि बाइडेन ये प्रस्ताव मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं। अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में ये बजट घाटे पर विवाद बाइडेन की पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। रिपब्लिकन लगातार अर्थव्यवस्था पर डेमोक्रेट्स को घेर रहे हैं।
साथियों समान्य तौर पर देखें तो यह दुनिया का सबसे ताकतवर और अमीर देश है, लेकिन कर्ज के डेटा को देखें तो वहां जीडीपी की तुलना में कर्ज सबसे ज्यादा है। बीबीसी रिपोर्ट में इसबात का जिक्र है कि बीते साल वहां काजीडीपी 21.44 ट्रिलयन डॉलर का था, लेकिन अमेरिका पर कर्ज 27 ट्रिलियन डॉलर का था। अमेरिका के कुल 32 करोड़ आबादी पर इस कर्ज को बांट दिया जाए तो करीब 17 लाख रुपए (23500 डॉलर) हर व्यक्ति पर यह कर्ज होता है। 2019 से 2021 तक कर्ज बढ़ने की कई वजह हैं। एक तो विकसित देश कर्ज बाजार में पैसा लगाकर रेवेन्यू कमाने के लिए करते हैं, लेकिन सरकार पर बेरोजगारी बढ़ने, ब्याज दर में कटौती आदि की वजह से भी कर्ज बढ़ते हैं। ब्याज दर में कटौती से वहां महंगाई बढ़ी। सरकार ने खर्च पर रोक न लगाकर कर्ज लेकर उसकी भरपाई की। कॉरपोरेट टैक्स 2019 में 35 प्रतिशत से घटाकर 21 प्रतिशत कर दिया गया। साथ ही दुनिया में ताकतवर कहलाने के लिए भी उसने बीते दशक में काफी पैसा खर्चा किया है। फिलहाल वह रूस के खिलाफ यूक्रेन को करोड़ों की मदद दे चुका है। वहीं चीन से निपटने के लिए ताइवान के लिए भी खूब खर्च किया है। एक दूसरे विकसित देश की बात करें तो वहां भी आज महंगाई नें पिछले 40 वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ दिए है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि वैश्विक चिंतनीय अर्थव्यवस्था बनाम भारतीय सुदृढ़ अर्थव्यवस्था।वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफ़एसडीसी) की 27 वीं बैठक में वित्तीय प्रणाली के सुरक्षित रेगुलेटेड पर मुहर विकसित देशों की चिंतनीय अर्थव्यवस्था के बीच भारत की वित्तीय व्यवस्था सुरक्षित, मज़बूत और नियमन के दायरे में सराहनीय उपलब्धि है।
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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र