एक सवालिया निशान ? क्या एसे मर्द , मर्द हैं

एक सवालिया निशान ? क्या एसे मर्द , मर्द हैं

एक सवालिया निशान ? क्या एसे मर्द , मर्द हैं
आज वर्तमान युग मे यदि देखा जाए तो हर ओर भ्रष्टाचार का ही बोल बाला है । ये भ्रष्टाचार किसी एक प्रकार का नहीं है , अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार है जो आपराधिक गतिविधियों के अंतर्गत आते हैं । अब ये भ्रष्टाचार चाहे कह लो आर्थिक से संबंधित हो या तस्करी, रिश्वत या कह लो हिंसा , बलात्कार , घरेलू हिंसा कैसा भी हो भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही है और हर भ्रष्टाचार के लिए सज़ा तो मुमकिन है हमारे न्यायिक नियम अधिकार के अंतर्गत ।
 ऐसे ही भ्रष्टाचार (गुनाह) के अंतर्गत जो गुनाह शामिल है , जो सर्वाधिक होने के बावजूद भी इस गुनाह के लिए कम आवाज़ उठाते हैं , ये गुनाह है घरेलू हिंसा , इस गुनाह के प्रति अधिक आवाज़ नहीं उठाने का एक कारण यह भी है मज़बूरी , दायित्व अपने नौनिहालों के प्रति जिसके लिए खामोशी इख्तियार कर अंदर ही अंदर घुटन में जीने को विवश होते हैं कुछ लोग या खुल कर कहूं तो औरतें । 
घरेलू हिंसा के बहुत से कारण है शराब , जूंआ , बाहरवाली आदि । जिसमें से एक खास मुद्दा जो अधिकतर देखा गया है वो मुद्दा है बाहरवाली का चस्का जो घरेलू हिंसा का कारण बनती है । तो क्या ये उस पत्नी की ग़लती है जो सब कुछ अपना त्याग आपके भरोसे आपके लिए आप से ब्याह कर आई और जिसके भरोसे आई मतलब पति के लिए वही पति उसे जीते-जी तड़पा-तड़पा कर मौत देता सिर्फ बाहरवाली रखैल , बाज़ारू औरत के लिए और कुछ तो ऐसी बाहरवाली औरतों को अपना लेते जो खुद पहले से ही शादीशुदा होती हैं । अरे ये तो सोचिए जो शादीशुदा औरत अपने पति की ना हुई वो आपकी कैसे होगी , एसी औरतें आप के साथ- साथ ना जाने कितने मर्दों को अपने शरीर के अंग दिखाकर अपना मतलब सीधा करती रहती होंगी । एसी औरतें सिर्फ रखैल या बाजारू औरतें कहलाती हैं जो कि एक बीवी की तरह आपकी परवाह नहीं कर सकती आपको सिर्फ एक गले में बंधे जानवर के पट्टे की तरह रस्सी को कस कर हाथ में पकड़कर यहां से वहां नचाती रहती होंगी । आप इनके इशारों पर नाचने वाले एक कुत्ते की भांति ही होते हो । आप ऐसी औरतों के लिए अपनी अर्धांगिनी के साथ अनैतिक रव्वैया अपनाते हैं उन्हें यातना देना , मारना , मानसिक दबाव डालना , बैल्टों से मारना , भूखे रखना वगैरह - वगैरह अरे वो पत्नी जो अपना सर्वोपरि आप पर और आपकी औलाद पर न्यौछावर कर देती है , जो हर वक्त की नज़ाकत के अनुसार खुद को उस किरदार मे ढ़ाल आपके साथ-साथ आपके परिवार के सदस्यों का भी ख्याल रखती है । कभी दवा दे डाक्टर , कभी पढ़ाई करवा कर बच्चों की टीचर , कभी मां तो कभी अन्य किरदार निभाती फिर भी वही प्रताड़ित होती किसके जरिए सिर्फ उस पति के जरिए जो रखैल के वशीभूत हो अपनी अर्धांगिनी को नकारता रहता है । अरे पत्नी दिन भर खुद को कितना भी खपा कर थक जाए पर यदि पति उसके माथे को सहला दे या उससे मीठे दो बोल बोले तो दिन भर की थकान पत्नी की चुटकियों मे खत्म हो जाती सम्मान और मोहब्बत पाकर अपने पति से । पर ! फिर भी पति उसकी भावनाओं को तार-तार कर अपने मर्द होने का एहसास करवाता और जताता की मैं कमाता हूं , खिलाता हूं । इसका मतलब ये तो नहीं हुआ ना , आप बाहरवाली के चक्कर में पड़ कर जीते-जी अपनी पत्नी की हत्या ही कर दो जिंदा तो रहती आपकी पत्नी पर उसके हर अरमान , बलिदान , सम्मान का कत्ल कर दिया जाता सिर्फ जिस्म की भूख मिटाने के लिए । तो बताइये आज मेरे सवालिया निशान पर उतरते ऐसे मर्द , मर्द कहलाने के लायक हैं या ऐसे मर्द उस पालतू कुत्तों के समान है जिनके गले की रस्सी रखैल , बाजारू , गिरी हुई गौरी चमड़ी वाली औरतों के हाथ में हैं जो सिर्फ रस्सी खींच मदारी की तरह कुत्तों को नचाती । ऐसे मर्द जो बाहरवाली के लिए अपनी पत्नी को मानसिक यातनाएं देते मर्द नहीं नामर्द हैं जिन्हें सिर्फ अपने मर्द होने का गुरूर तो है , पर वो भीतर से मर्द नहीं । ऐसे मर्द जब वक्त के ढ़लने अनुसार अर्थहीन हो जाते हैं मतलब खुले शब्दों मे बोलूं तो शक्तिहिन हो जाता है तो उसका त्याग बाहरवाली कचरे के ढ़ेर के समान करती पर इस समय अंतराल में ऐसी औरतें चमड़ी की इच्छुक नहीं दमड़ी और उपहारों की इच्छुक रहती । जो एक रस्सी से बंधा मर्द उसे देता रहता समय-समय पर जब सूपड़ा सफ़ा चट हो जाता तो कूड़े के ढ़ेर से निकला तो सही मर्द , पर वो अपने परिवार वालों के नज़रों मे इतना अधिक गिरा हुआ इंसान कहलाता की परिवार वाले उसे ना सम्मान देते और ना ही उसके होने ना होने का फर्क उसकी औलाद और बीवी को पड़ता । ऐसे मर्द सिर्फ चमड़ी की चाह में दमड़ी भी लुटा बैठते और अंत में जो हाथ लगता वो होता है *बाबा जी का ठिललू* ऐसे मर्दों पर एक कहावत जो एक दम़ फीट बैठती *ना घर का ना घाट का* ।

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Veena advani
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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