साहित्य जगत में फ़ैल रहा व्यवसाईयों का मकड़ जाल
May 28, 2023 ・0 comments ・Topic: lekh Veena_advani
साहित्य जगत में फ़ैल रहा व्यवसाईयों का मकड़ जाल
वर्ष 2018 मे मैंने साहित्य जगत में कदम रखा था । इससे पहले मैं यह भी ना जानती थी की , साहित्यकार से संबंधित किसी प्रकार के सोशल मीडिया पर ग्रुप भी होते हैं । वर्ष 2018 में ही मुझे एक बैंक के अधिकारी ने साहित्य जगत के पटल से जोड़ा । वर्ष 2018 से अब तक के सफर में कितना कुछ बदल गया है । साहित्य जगत के क्षेत्र में , ऐसा लगता है । साहित्य की तो कोई कीमत ही ना रह गयी है । बस , साहित्य एक व्यवसायिक तौर पर देखा जा रहा है । लोगों को लगता है कि बस कोई न कोई साहित्यकार फस जाए और उनसे कमाई का साधन शुरू हो जाए । जी हां , मैं बिल्कुल सही कह रही हूं । जब मैं वर्ष 2018 में साहित्य जगत से जुड़ी थी तो मुझे नहीं पता था कि साझा संकलन क्या होता है , एकल पुस्तक का प्रकाशन क्या होता है । शुरू-शुरू में तो मैंने साझा संकलन के नाम पर रचना मांगने वालों को रचनाएं दी और साथ में पैसे भी दिए । वर्ष 2020 में आते आते मुझे ये पता पड़ा और मैंने ये महसूस भी किया कि साझा संकलन हमारे किसी काम का है ही नहीं । यह तो सिर्फ संपादक के लिए एक मोटी कमाई का जरिया है जिसे बैठे-बिठाए रचनाएं साहित्यकारों से मिल जाती है , साथ ही पुस्तक प्रकाशन के नाम पर साहित्यकारों से पैसे भी ऐठ लिए जाते हैं । अगर देखा जाए तो संपादक के हाथ में रचनाएं भी लग गई , पैसे भी मिल गए और वह एक पुस्तक के संपादक भी बन गये । उनके हाथों में तो भर-भर कटोरा मलाई आ गई । वर्ष 2020 से लेकर मैंने साझा संकलन में भाग लेना बंद कर दिया और साथ ही मैंने 2021 मे मानवता सेवा चयन नाम की संस्था बनाई जिसमें 1900 साहित्यकार इस समय तक जुड़े हुए हैं । उन्हें भी मार्गदर्शन किया की साझा संकलन हमारे लिए किसी काम की नहीं है । हां ! अगर निःशुल्क साझा संकलन है तो आप उसमें रचनाएं दीजिए , क्योंकि यह हमारे लिए विज्ञापन का जरिया है धीरे-धीरे साहित्यिक व्यवसायियों ने देखा की साझा संकलन में लोगों ने भाग लेना कम कर दिया है तो उन्होंने कमाई का दूसरा जरिया निकाल दिया है । जहां देखो कोई ना कोई , किसी न किसी प्रकार से , किसी न किसी विषय पर एनथालॉजी के नाम पर केवल 30 सदस्यों या 40 सदस्यों के रचनाओं के साथ ई-बुक बनाकर सभी को ई सम्मान पत्र पकड़ा रहे हैं । इसका उनको क्या फायदा और किस तरह हो रहा है , और क्यों लोग इतना निःशुल्क साझा पुस्तकें बनवा रहे हैं , यह अभी हमारी समझ के बाहर है । परंतु , मैं तो यह मानती हूं कि निःशुल्क साझा पुस्तकें हम साहित्यकारों के लिए वरदान के समान है । जिसमें हमें एक रुपए भी न देना पड़े और हमारा विज्ञापन मुफ्त में होता रहे । कहते हैं कि जिसके नसीब में होगा वह खाएगा ही और जिसके नसीब में नहीं होगा वो लाख कोशिशें भी कर ले फिर भी ना खा पाएगा । अब हमारी रचनाओं को ई पुस्तकों के माध्यम से कहां और किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है , यह तो हमें भी नहीं पता है । हो सकता है हमारी लिखी हुई रचनाओं को किसी और नाम से प्रकाशित कर छापा जा रहा हो । हमने तो अपने सत्कर्म कर लिए सामने वाले के ऊपर , यह कहे साहित्यिक व्यवसायियों को हमने विश्वास कर अपनी रचनाएं सौंप दी , वो इसका इस्तेमाल कैसे करते उनके ही कर्म जानते हैं । आज अगर साहित्य जगत में देखूं नित कोई न कोई निःशुल्क एंथलाज़ी पुस्तक लाकर साहित्यकारों को दाना डालकर उनकी रचनाएं ले रहे हैं । जैसा कि मैंने कहा कि निःशुल्क साझा संकलन हमारा विज्ञापन करने का एक बेहतरीन प्लेटफार्म है तो नि: शुल्क साझा संकलनों मे आप सभी बेझिझक रचना दें । अपना फायदा देखते हुए। परंतु साझा पुस्तक के लिए पुस्तक संग , पैसा भी देना सरासर अपना शोषण करवाने जैसा होगा ।About author
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर , महाराष्ट्र
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